Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 113
________________ प्राकृतलेखविभागा बामा रह्यो हतो. दरम्यान इ. स. पूर्व २६४ मां तेणे छूटा थवाना एक निष्फळ प्रयत्न कर्यो हतो अने तेना बदलामा अशोकने हाथे भारे खुवारी भोगवी हती. छेवटे मौर्यो ज्यारे नबळा पड्या, त्यारे ई. स. पूर्वे त्रीजा शतकना छेल्ला चरणमा चेत [ सं. चैत्र] वंशना राजा क्षेमराजे परतंत्रतानी घसाइ गयेली बेडी तोडी नांखी. ते ज अरसामां अंध्रदेशनो राजा सिमुक पण स्वतंत्र यो. त्यारबाद कलिंगना राजाए उत्तरमा उत्कल, पश्चिममा कोशल अने दक्षिणमां वेंगीमंडळनो प्रदेश जीती लेई राज्यमां वधारो को. पश्चिममां आंध्र राजाए पण नासीक पर्यंत ६ जुओ Asoka's Kalinga Edicts. ७-८ हस्तिगुफाना लेखमां खारवेल पोताने चेतराजवंसबंधन [ सं. चैत्रराजवंशवर्धन ] कहे छे; तथापि पूर्वजोमां तो क्षेमराज अने बुधराज, बेने ज गणावे छे. ते उपरथी क्षेमराजना समयमां कलिंग स्वतंत्र थयो एम अहीं कहेवामां आव्यू छे. भिक्षुराजनी पेठे क्षेमराज अने बुधरान उपनाम जणाय छे. ९ जुओ Sinith's Early History of India. १० खारवेल उत्कल जीत्यानो दावो करतो नथी. छतां तेनो लेख उदयगिरि पर्वत उपर कोतरेलो छे. तेथी ए गादीए आव्यो ते पहेला हूं उत्कल कलिंगे जीती लांघो समजू छू. प्रस्तुत लेखमां शातकर्णिना रक्षण अर्थे पश्चिममा खारवेले लश्कर मोकरयूं कर्तुं छे, तेथी गोदावरी अने कृष्णाना मुख वच्चनो प्रदेश ते काळे आंध्रोना कबजामां न हतो पण कलिंगनी सत्ता नीचे हतो, एवी अटकळ करी छे. ११ पुराणोमा सिमुक अने तेना वंशजोने आन्ध्र कह्या छे. आंध्र वंशना त्रीस राजा तेमां गणाव्या छे. ए त्रीस आंध्रो पछी सात "Aho Shrut Gyanam"

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