Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 99
________________ प्राकृतलेखविभाग। हतचकिवाहनवला चकघरो गुतचको पसंतचको राजसिवंसकुलविनिगतों महाविजयो राजा खारवेलसिरि ॥ २. c मां को ने बदले ण छे. मूळमां को स्पष्ट छे. त्यार पछीना छ अक्षरो नष्ट थया छे. ३. ० ए ता पछी बे अक्षरोनी जग्या खाली राखी छे. पण स्पष्ट रीते देखाय छे के फक्त एकज अक्षर न नी जग्या छे. संकार ने बदले c मां भकार छे जे भूल छे. कारण के मूळमां संकार स्पष्ट छे. K मा मात्र कारकार छे अने बीजा अक्षरो छोडी दीधा छे. ४. c ए अ मूकी दीधो छे. ति ने बदले ल ए खोटो अक्षर आप्यो छे पण ति स्पष्ट जणाय छे. वाहन ने बदले c ए वाहनि आप्यु छे अने बलो ने बदले ठलो अक्षरो पण खोटा छे. ५. c मां रिसंतचको छ. K - खोटुं छे. ६. नुं खरूं छे, KD खोटुं छे. ७. K मां खरवेल छे. ७ ए खारवेल आप्यु छ जे खरू छे. ए सिरि नी पछी रि थी जरा नीचे नो आप्युं छे. फोटोग्राफमां तेमज K मां आ प्रमाणे नथी. कदाच उपर कोई अक्षर मांगी गयो छे एम दर्शाववाने नो मूक्युं हशे. अहींआं तो तेने कोई संबंध नथी. "Aho Shrut Gyanam"

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