Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 84
________________ पाचीनजैनलेखसंग्रह। (४) कारयति । पनतीसाहि' सतसहसेहि पकातिये रजयति दितिये च वसे अमितयिता सातकणि पछिमदिसं ६. K मां सवुयानपतिसंठयपव अने c मां सवयानंपतिसंठपनं च छ. c मां देखाडेलु चोथा अक्षर उपरर्नु अनुस्वार ते अनुस्वार नथी पण शिलामां छिद्र छे. १. c मां पंनतासिजी अने K मां पंनतिसिसि छे. २. c मां सअपहसेहि छे. पण सतसहसेहि मूळ लेखमां तेमज K मां स्पष्ट छे. ३. 0 मां पकातियेइ छे. ४. c मां जछतः छे. पण पहेलो अक्षर जे जरा झांखो छे ते सिवाय मूळ लेखमां रजयति स्पष्ट छे. तेथी K ए पहेलो अक्षर मूकी दीधो छे पण बाकीना त्रण अक्षर खरा आप्या छे. ५. K मां दताये अने C मां दतिये छे. पण पहेला अक्षरने इकार होय तेम मने लागे छे तेथी हुं दि वाचुं छु. डु पण होइ शके. आ बन्ने सं. द्वितीये ने माटे वपराया छे. ६. c मां अचितयत तथा : मां अचितयित छे. बीजो अक्षर भांगी गयो छे तेथी ते चि जेवो देखाय छे. पण ते भि छे, तेथी सं. अभित्राय ने माटे अभितयिता वांचवू पसंद करूं छु. C मां जे एकार छे ते भूल छे मूळ लेखमा इकार स्पष्ट छे. ७. Kनी नकलमां सोतेकानं तथा c मां सोतकानि छे मूळ लेखमां सातकणि स्पष्ट छे. K नो सो ए भूल छे अने c मां "Aho Shrut Gyanam"

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