Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 72
________________ १२ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। आ उपरथी प्रतिपादन थाय छे के स्तूपनी तथा वृक्षनी पूजा पहेलां जैनोमां प्रचलित हती. उदयगिरिनी गुहाओमां बौद्धोनी एके प्रतिमा नथी तेमज अर्वाचीन बौद्धोए पश्चिम हिंदनी बौद्ध गुहाओमां बेसाडेली प्रतिमाओमांनी पण एके नथी. उलटुं, केटलीक अर्वाचीन गुहाओमां तीर्थंकरोनी जैनप्रतिमा तथा यक्ष अने देवोनी प्रतिमाओ कोतरेली छे अने उदयगिरिनो बीजो भाग जेने खंडगिरि कहे छे तेना उपर हजु पण दिगम्बर जैनोनां देवालयो छे. आ सर्व उपरथी एम जणाय छे के तेनो बौद्धधर्म करतां जैनधर्म साथे वधारे संबंध छे ___अर्हन्तो तथा सिद्धोने नमस्कार कर्या बाद लेखमां खारवेल राजानो जन्मथी मांडीने ३८ वर्ष सुधीनो वृत्तांत आपेलो छे. तेने चेत अगर चैत्रराजवंशनो विस्तार करनार कहेवामां आव्यो छे; अने आ विशे. पण ते आ वंशनो छे एटलुं जणाववा माटे ज मात्र वापरवामां आव्यु छे. तेथी एम स्पष्ट रीते अनुमान थइ शके के खारवेल राजा चैत्रवंशनो हतो. आ राजाना बीजां विशेषणो 'वेर ' ' महाराज' अने ' महा. मेघवाहन ' तथा ' कलिंगाधिपति ' छे. 'वेर' नो शो अर्थ छे ए संतोषकारक रीते समजावी शकाय तेम नथी; पण हुं धारुं छे के तेने बदले 'वीर' जोईए. महाराज शब्द मात्र तेनी मोटाइ दर्शाववानेज वापरवामां आव्यो छे. 'महामेघवाहन' नो अर्थ 'जेनुं वाहन मोटो मेघ छे, एवो छे. जे उपरथी एम जणाय छे के एना राज्यना जे हाथीओ उपर आ राजा बेसतो तेमनुं नाम 'महामेघ' हशे. ' कलिंगाधिपति ' उप परंतु आना विषयमा पंडितजीनी जे कल्पना छे ते वास्तविक छे के केम ते खास विचारवा जेवी छे. कल्पना रमणीय छे.-संग्राहक. २ सरखावो-जनरल कनींगहामर्नु, आकीओ० सहे. पु १३, पृ. ८४ तथा कॉरपस इंस्काश्यानम इंडीकॅरम, १.२७. "Aho Shrut Gyanam"

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