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प्राचीन जैनलेखसंग्रह |
तनां नीचेनां वे पांखडां खुणावाळां हतां (A) अने हाल ते गोळाकार छे (h). ते वखते इकारना पांखडा खुणाकारे हतां ( ), हाल ते प्रमाणे नहि होता ते उंचा जाय छे ( ). आ प्रमाणे कारणो छे ते उपरथी आ लिपि अशोकथी अर्वाचीन छे एम प्रतिपादन थाय छे.
आ आखो लेख द्यां छे. तेनी भाषा प्राकृत छे अने अशोकना लाट लेखोथी भिन्न छे पण पश्चिम हिंदना गुहा लेखानी जुनी महाराष्ट्री प्राकृतना जेवी छे.
आरंभमां अर्हतो अने सिद्धोने नमस्कार कर्यो छे. अने आ उपरथी लेख बनावनारनी उंडी धार्मिक श्रद्धा आपणने जणाइ आवे छे. जैनोना मुख्य सूत्रनो ए भाग होय तेम जणाय छे जेने 'नमोक्कार' अगर 'नोकार' कहेवामां आवे छे अने जेनो वारंवार तेओ जप करे छे तथा जे तेमनां सूत्रोनां आरंभमा घणीवार जोवामां आवे छे.' ते सूत्र अने आ नमस्कार मां फेर एछे के आमां फक्त अर्हत 'अने' सिद्धनाज-बेनांज नाम आवे छे, त्यारे सूत्रमां 'आचार्य', 'उपाध्याय', अने 'साधु' ए त्रण नामो वधारे छे. लेखमां आ नामो मूकी दीघां छे तेनुं कारण ए छे के पहेला बेनी पेठे आ त्रण बहु जरुरनां नथी. आ लेखना नमस्कारनी समजुती विषेनी पुष्टिमां जाणवुं जोइए के उदयगिरिनी माणेकपुर गुहाना ३ जा लेखमां एम कहेलुं छे के ए गुहा " कलिंगना श्रमणो अर्हन्त प्रसादानम् " ने माटे बनाववामां आवी छे. अर्हन्तो उपर आ प्रमाणे धार्मिक श्रद्धा राखवी ए जैनोनी खासीयत छे, आ गुहाओमां कोई पण ठेकाणे शाक्यभिक्षु अगर एवो बौद्ध शब्द खास करीने वापरेलो नथी.
१ सूत्र आवो छे:- नमो अरिहंताणं । नमो सिद्धाणं । नमो आयरियाणं । नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सव्वसाहुणं । तेनो अर्थ:-अर्ह न्तोने नमस्कार, सिद्धोने, आचार्योंने, उपाध्यायोने, अने विश्वना साधुओने नमस्कार.
"Aho Shrut Gyanam"