Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 40
________________ आ बधां ' लयनो' बनाववामां आव्यां छे तेमां भाजे सेंकडो वर्षेथी ए धर्मना कोईपण श्रमणे तो शुं परंतु गृहस्थे पण पग सुधां नहि मूक्युं होय, जे प्रदेशमा पूर्वे जैनधर्म आटली बधी जाहोजलाली भोगक्तो हतो त्या आजे : जैन ' ए शब्दधी पण लोको सर्वथा अज्ञात छे. कटकमां थोडाक जैन दुकानदारो छे अने तेमना तरफथी एक न्हार्नु सरखं (दिगंबर संप्रदायर्नु) नवीन मंदिर पण खंडगिरि उपर बनाववामां आवेलुं छे, परंतु ते बधु परदेशीय छे. ए दुकानदार जैचो दक्षिणमाथी व्यापारार्थे जइने त्यां वसेला छे. ओरीस्साना मूळ वतनीओमांथी कोई पण जैनधर्मने ओळखतो नथी. ओरीस्तानो इतिहास यथार्थ रीते हजी सुधी उपलब्ध थयो नी तेथी ए जाणी शकातुं नथी के ए प्रदेशमां जैनधर्मे केटली प्रगति करी हती ? सोपण ना गुफाओ अने लेखो उपस्थी विद्वानो अनुमानो करे छे के घणाक समय सुधी जैनधर्म ए प्रदेशमा राज्यधर्भ तरीके पळातो रह्यो छे. जैन अने बौद्ध धर्म बंने साथै साथे ज आ प्रदेश उपर खील्या होय एम जणाय छे अने तेमनी असर ब्राह्मणधर्म उपर पण फेटलीक रीते सज्जड थयेली मनाय छे. आ विषयमा बाबू मनोमोहन लखे छे के ___" इसवी सननी शरूआत पहेलां अहीं जैनधर्म तथा बौद्धधर्म प्रवर्ततो हतो अने तेमनी असर हिंदुधर्म अथवा खरी रीते कहीए तो ब्रह्मधर्म उपर थइ हती. ब्रह्मधर्मनो बौद्ध अगर जैन धर्मनी साथे मेळाप थतां कळा कौशल्यना दरेक विभागमा फेरफार थया; शिल्पकला पण तेनी असरथी अळगी रहे तेम नहोतुं. बौद्धधर्मनी सर्वव्यापी असर हजु पुरीमा दृष्टिगोचर भइ शके छे." "Aho Shrut Gyanam"

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