Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 46
________________ समयमां जैनधर्मनो लोप थनो असंभवित छे. म्हारा धारवा प्रमाणे ई. स. ना १२ मा सैका पछी त्यांथी जैनधर्म अदृष्ट थयो होवो जोइए. कारण के ए समय पछी वैष्णवोनो जोर वधवा मांड्यो हतो अने दक्षिण अने कर्णाटकना जे राजवंशो जैनधर्म प्रति सद्भाव धरावता हता ते पण ( रामानुजाचार्यना संप्रदायना प्रादुर्भाव अने प्रभावना लीधे ) आ समयमां जैनधर्मथी पराङ्मुख थवा लाग्या हता. आथी करीने घणी रीते संभवित छ के ए समय पछी कलिंगमांथी जैनधर्म अदृश्य थयो हशे. अने ते अदृश्य थवामा मुख्य कारण कोई प्रबल राजकीय उपद्रव ज होवा संभव छे. मी. वीन्सेन्ट स्मीथना कहेवा मुजब*, जेम दक्षिणना केटलाक शैव राजा. ओए ई. स. ना सातमा सैकामां जैनधर्म उपर अत्याचार गुजार्यो हतो अने अनेक जैनोनो सर्वनाश को हतो, तेम ए कलिंगमा पण कोई हिंदुराजाए आवी ज वर्तणुक चलावी होय अने तेना लीधे जैनोने पोताना प्राचीन भने प्रिय एवा ए प्रदेशनो सर्वथा त्याग करवो पढ्यो होय, ते धणी रीते बनवा जोग छे. जो के कलिंगना इतिहासमाथी ए विषे कशो विशेष उल्लेख मळतो नथी तो पण छूटी छवाइ एवी दंतकथाओ अवश्य संभळाय छे के जे आ वातने पुष्टि आपती होय. ' आर्किओलॉजीकल सर्वे ऑफ इन्डीआ' ना सने १९०२-०३ ना एन्युअल रीपोर्टमां मी. T. H. Bloch आ बाबत उपर लखे छे के " खंडगिरिनी आ गुहाओनो जैनोए क्यारे त्याग कर्यो ए खरी रीते जा वाने आपणी पासे साधन नथी. मात्र पुरीना देवालयना इतिहासमांनी एक अव्यक्त दंतकथा छे. जेमां कहेलुं छे के कोडगंगाना पौत्र मदन महादेवे भुवनेश्वरनी आजुबाजुनी टेकरीओमा रहेता जैन तथा बौद्ध * जुमओ, अली होस्टरी ऑफ इन्डीभा, पृ. ४५४-५. "Aho Shrut Gyanam"

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