Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 60
________________ प्राचीन नाम ' कुमारी पर्वत ' सूचवे छे. ते बंने टेकरीओ इ. स. ना दशमा अगियारमा सैका सुधी ' कुमार-कुमारी पर्वत ' तरीके जाणीती होय एम लागे छे. (2) वापि' शब्द टेकरी उपरना स्वडकोमा कोरी काढेला न्हानां न्हानां संख्याबंध कुंडोने सूचवे छे. (3) बीजी पंक्तिनो छेलो शब्द 'इसण' अथवा तो 'शान' लागे छे. आ शब्द विक्रम संवत् १०८३ मां थयेल महीपालना सारनाथना शिलालेखमा जोवामां आवे छे. आ शिवना अनेक नामोमा एक नाम छे, एम डॉ. वागेल कहे छे; ( Arch. surv. of India, Annual Report, 1905-6, P 98, Nove I.) पण उपरोक्त शिलालेखमां तेनो संबंध-अर्थ तथा उपयोग विचारतां ते शब्दनो अर्थ मंदिर थतो होय तेम लागे छे. (4) ' उद्योतित' शब्दनो साधारण अर्थ प्रकाशित थाय छे. पण अहिं तीर्थकरना मंदिरो अने कुवाओ सुधारवामां-स्मराववामां आव्या हता एवं सूचन आ शब्दथी थाय छे. (5) चोथी पंक्तिनो छेल्लो भाग अने पांचमी पंक्तिना प्रारंभना शब्दो बील्कुल समजाता नथी. भाषान्तर. श्रीमद् उद्योतकेशरिना विजयि राज्यना पांचमा वर्षमा श्रीकुमारपर्वत उपर आवेलां जीर्ण मंदिरो तथा जीर्ण वापिओ प्रकाशित करवामां आवी हती, अने ते जग्याए चोवीस तीर्थकरनी मूर्ति ओ बेसाडवामां आवी हत्ती. प्रतिष्ठाना समये............. श्रीपार्श्वनाथनी जग्यामां ( मंदिरमा ! ).......... जसनंदी. ... .... .... .... ........ "Aho Shrut Gyanam"

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