Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 62
________________ प्राचीनजैनलेखसंग्रह। प्रसिद्ध कर्यो, ते वखते आ विषयनो प्रारंभज हतो तेथी प्रथमना भाषां. तरमां केटलीक चूको थइ होय तो तेमा कांइ आश्चर्य पामवा जेवू नथी. पण जाणवा जेवू मात्र ए छे के जे राजाना वखतमां आ लेख थएलो छे ते राजानुं नाम प्रीन्सेप वांची शक्या नहि अने हजु पण आ भूल कोइए सुधारी नथी. इ. स. १८७७ मां जनरल कनींगहामे (General Cunningham ) कॉरपस इंडीस्क्रीप्श्यानम इंडीकरम ( Corpus Inscrip. tionum Indicarum) ना पु. १ मां आ लेखनी नकल आपी छे, पण मेजर कीट्टनी नकल करतां आ नकलथी काइ वधारे फायदो थाय तेम नथी. त्यारबाद डॉक्टर राजेंद्रलाल मीत्रे पोताना ' अॅन्टीक्वीटीझ ऑफ ओरिस्सा ' नामक पुस्तकमां तेनुं भाषांतर बहार पाड्यु. आ भाषांतर विष घणी आशाओ राखवामां आवी हती; पण काइ अजवाळु पाडवाने बदले ते भाषांतरथी गुंचवाडी वध्यो. आ पुस्तक साथे जे नकल आपवामां आवी छे ते इ. स. १८६६ मां डॉक्टर भाउ दाजीने माटे में जाते प्रत्यक्ष जोइने तैयार करेली नकल उपरथी तथा कलकत्ता स्कुल ऑफ आर्ट्सना मी. लॉके (Locke) जे प्लास्टर फोटोग्राफ लीधेलो अने जे जनरल कनींगहामे मारा तरफ मोकली आप्यो ते उपरथी तैयार करेली छे. आ लेखनुं नाम, जे गुहा उपर ते कोतरेलो छे ते गुहाना नाम उपरथी पडेलं छे. त्यांनी जमीन उपर पडेला केटलाक भांगेला कटका उपरथी एम जणाय छे के आ गुहा कोइ वखते भागेली हशे अने त्यारबाद तेनो पुनरुद्धार करी फरी बंधाववामां आवी हशे. हाथीगुम्फा ए नाम शा कारणथी पडयूं हशे ते जाणवू अशक्य छे. कदाच एम "Aho Shrut Gyanam"

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