Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्राचीनजैनलेखसंग्रह। जीजा लेखमां वपरायलुं छे.' केटलीक उदयगिरिनी गुफाओना द्वारनी कमानो उपरनां कोतरकामो उपर पण ते काढेलं छे.
जुनागढनी एक गुहाना द्वार उपर शुभ शकुनवाळी घणी चीजो काढेली छे. स्वस्तिक, दर्पण, कलश, घडीआळनी शीशी जेवी नेतरनी खुरशी, भद्रासन, बे नानां मत्स्यो, फुलनी एक माळा, अने
आंकडो-आ बधामां आ चिह्न जोवामां आवे छे. सांचीना तोरण उपरनी त्रीजी आकृति उपर पण ए आवेलुं छे. तेमज गळानां घरेणांमां पण ते घणीवार जोवामां आवे छे.
आ चिह्ननो अर्थ शो छे ते जणातुं नथी. पण जाणवू जोइए के पहेलांना बौद्धो आ चिहने सारुं गणता हता. त्यार पछीना बौद्धो तेम गणता होय एम लागतुं नथी. कारणके इलुरा, अजन्टा, नाशिक अने कान्होरमांनां बौद्ध कामो उपर ते जोवामां आवतुं नथी.
बीजु चिह्न ' स्वस्तिक ' छ जेने विजयदर्शक गणवामां आवे छे अने जेनो अर्थ संस्कृत लेखोमा प्रथम वपराता · स्वस्ति' शब्दना जेवोज छे. आ चिह्न दुनियाना घणा भाग उपर वपराय छे अने एना अर्थ विषे विद्वानोना घणा जुदा जुदा मतो छ.' तेनो गमे ते अर्थ थतो होय पण एटलं तो नक्की के जुदा जुदा धर्मना लोकोए ते वापरेलुं छे तेथी एम धारी शकाय के ए लोको पोतपोतानां कारणोने लीधे तेने शुभ गणे छे.
१ आर्कीऑलॉजीकल स] ऑफ वेस्टर्न इंडिआ, सॅपरेट पेम्फलेट १०, पृ. २३, २८, ४२.
२ नुमीस्मेटीक कॉनीकल, न्यु सीरीझ पु. २०, पृ. १८-४८; इंडीअन अॅन्टी क्वेरी, पु. ९; पृ. ६५, ६७, १३५; इंडीअन अन्टी क्वेरी, पु. १०, पृ. १९९; कनींगहामनी भील्सा टोप्स, ३५६ नोट.
"Aho Shrut Gyanam"

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