Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 56
________________ भाग तरीके प्रसिद्ध करवानो विचार राख्यो हतो. परंतु पाछळथी केटलाक जनोना विचारथी तेम ज जैनलेखोमां आ लेखोनें स्थान सौथी प्रथम होवाथी प्रथम भाग तरीके प्रथम एमने ज एकला प्रकट करवामां आव्या छे. बीजा भागमां मथुराना बधा लेखो आवशे अने त्रीजामां बाकीना बधा संस्कृत लेखोनो संग्रह थशे. अंतमां, आ लघु प्रयत्नमां म्हने श्रीमान् दे. रा. भांडारकर एम. ए. तथा श्रीयुत् के. ह. ध्रुव बी. ए. महाशयो तरफथी जे प्रत्यक्ष के परोक्ष रीते सहायता मळी छे तेना माटे हुं तेमनी अंतःकरणपूर्वक आभार मानी विरमुं छु. श्रावणी पूर्णिमा. वालकेश्वर, मुनि जिनविजय. मुंबई. "Aho Shrut Gyanam"

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