Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 55
________________ कोई होइ शके नहि अने ते मांगवानी कोह धृष्टता पण करे नहि. मूर्तिपूजा मानवी के न मानवी ए एक जुदी बाबत छे अने तेनो संबंध तत्त्वज्ञाननी साथे विशेष छे, परंतु अमुक समय पहेला जैनोमां मूर्तिपूजा हती के न हती, ए तिहासिक प्रश्ननुं तो निराकरण आ लेखथी एकदम थइ जाय छे अने श्रमण-भगवान् श्रीमहावीरदेवना निर्वाबाद बीजा ज सैका जेवा पुराण कालमां पण मूर्तिपूजा प्रचलित होवार्नु सर्वमान्य प्रमाण आ लेखमां स्पष्ट जोवामां आवे छे. उपसंहार. ___ उपोद्घातनो उपसंहार करतां जणावयु जोइए के १७ पंक्ति जेवा आ न्हानकडा लेखनु आटलं लांबु पूंछडं जोइ केटलाक वाचकोने तो आश्चर्य थशे अने केटलाकने कदाच कंटाळो पण आवे, परंतु जो तेओ ध्यानपूर्वक आ समग्र निबंधनुं अवलोकन करशे तो आशा छे के तेमने केटलीक अपूर्व वातो आमा जणाइ आवशे अने जैनधर्मना प्राचीन गौरवना संबंधमां तेमना ज्ञानमा काइक वधारो ज थशे. जैनसमाजनो विशिष्ट भाग व्यापारी होवाथी स्वाभाविक रीते ज तेमा केळवणीनी म्होटी न्यूनता छे अने तेमां वळी आवा इतिहास जेवा उंडा अने अरसिक विषयमा तो तेनो प्रवेश ज क्याथी होइ शके, आq विचारीने, लेखोक्त हकीकत बरोबर अने सविस्तर समजाय तेटला माटे आटलं लंबाण करवानी जरूरत पडी छे. ज्यारे आ लेखसंग्रहने छपाववानी शुरुवात करी हती त्यारे प्रथम बीजा जे आधुनिक संस्कृत लेखो छे तेमनो एक संग्रह करी प्रथम भाग तरीके बहार पाडवो अने पछी आ खंडगिरिना लेखो तथा मथुराना लेखोनो एकत्र संग्रह करी 'प्राकृतलेखविभाग' ना नामे बीजा "Aho Shrut Gyanam"

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