Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 42
________________ थयां जमीनदोस्त थई गयां छे, परंतु बौद्धनी असरनुं जे काई गुफाओमां हाल बाकी रह्यो छे ते उपरथी बौद्धधर्मनी चढती विष ख्याल आवी शके. हिंदुओने प्रिय एवा जगन्नाथ विषे बौद्धधर्मे घणी सचोट असर करी छे." __ " हाथीगुफा लेखमां पंडित भगवानलाल इंद्रजीए वांच्यु ते प्रमाणे तेनी मिति ई. स. पूर्व बीजा सैकानी वचमा छे अने तेनो कर्ता कलिंगनो राजा अने जैनधर्मनो उत्तेजक खारवेल छे. आपणे खारवेल तेमन तेना वंश विषे काई पण जाणता नथी, मात्र उदयगिरिनी स्वर्गपुरी गुहाना एक लेखमां तेनी स्त्रीन नाम जोवामां आवे छे. आ छूटी छूटी हकीकत उपरथी एम साबीत थाय छे के कलिंग देश उपर जैन राजाओं एक वखते राज्य करता हता. खंडगिरि अने उदयगिरीनी गुहाओ उपरथी स्पष्ट रीते जैन अने बौद्धधर्मनी असर दृष्टिगोचर थाय छे." " जैनधर्म कलिंगदेशमां एवां सज्जड मूळ घाल्यां हतां के जेनी असर आपणे ई. स. ना १६ मा सकामां पण जोई शकता हता. सूर्यवंशी राजा, ओस्सिाना अधिपति प्रतापरुद्रदेवने जैनधर्म विषे घणी ममता हती. धी रेवरन्ड लाँगे तेने जैन ठराव्यो छे. + खंडगिरि उपरनी नवमुनि गुहामांना एक लेखमा जैन श्रमण शुभचंद्रनुं नाम जोवामां आवे छे. " " आवी छूटी छूटी विगत उपरथी आपणे निर्णय उपर आवी शकीए के अहींआ केटटोक बखत जैनधर्मनुं जोर हतुं अने ते राज्य + ' जर्नल ऑफ एशीयाटीक सोसायटी ऑफ बेंगाल ' पु. २८, नं. १-५ ( १८५९). "Aho Shrut Gyanam"

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