Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 28
________________ (४) आ अभिनन्दननाथनी ' ध्यानी ' आकृति छे ते (३) ना जेवी छे; उपरना बे सेवकोने बदले बे कमळो छे. चिन्ह तरीके मांकडु चितरेलं छे. (५) आ ( ३) ना जेवी छे; डाबी बाजुना सेवकनो हाथ माथाना मुकुट उपर छे. चिन्ह तरीके हंस छे. आ सुमतिनाथनी आकृति छे. (६) आ ( ३ ) ना जेवी छे चिन्ह तरीके पद्म काढेलु छे. आ कमळनी जमणी बाजुए (३) नी माफक पाणी, वासण छे अने डाबी बाजुए कुंभ छे. आ पद्मप्रभुनी आकृति छे. (७) आ सुपार्श्वनाथनी ध्यानी आकृति छे. उपरनी आकृतिओने बदले अहीं आर्छ शोभावाढं काम करवामां आव्युं छे. अहीं चिन्हमा स्वस्तिक छ जेनी शाखामो घडीआळना क्रमथी उलटी दिशामां वाळेली छे. (८) आ (७) ना जेवी छे. पण उपर- आर्छ काम तेना करतां जरा जुदुं छे. चिन्ह तरीके अर्धचंद्र छे. आ चंद्रप्रभुनी आकृति छे. (९) आ (८) ना जेवी छ; अहीं उपरनी आकृतिओमां कमळो छे. चिन्ह तरीके मोर छे. आ आकृति जेवी बीजी एके नथी. कारण के कोईपण तीर्थकरने मोरनु चिन्ह नथी. (१०) आ (९) थी जुदी छे. तेमां तीर्थकरनी उभेली नम आकृति छे. चिन्ह जतुं रडुं छे. बे पोपटनी आकृतिओ छे. आ भाकृति जेवी बीजी नथी. (११) आ (१०) ना जेवी छे. पण नग्न आकृति उपर सर्पनी छाया छे. उपरनी आकतिओमां बे उडती परीमो छे. चिन्ह "Aho Shrut Gyanam"


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