Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 30
________________ ( २० ) आ (१५) ना जेवी ध्यानी आकृति छे. एक कल्पित छोडनुं चिह्न छे तेथी २१ मा तीर्थंकर नमीनाथनी आकृति दर्शावे छे. (२१) आ (१५) ना जेवी ध्यानी आकृति छे. काचबानुं चिह छे. तेथी ते २० मा तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथनी आकृति दर्शावे छे. (२२) आ ध्यानी आकृति छे; उपरना भागमां देवांगनाओ काढेली छे. शंखनी निशानी छे अने तेनी बे बाजुए मोर छे अने तेथी ते २२ मा तीर्थंकर श्री नेमीनाथनी आकृति दर्शाये छे. (२३ ) आ एक उभी नग्न आकृति छे. उपरना भागमा कमळो छे. तीर्थकरना मस्तक उपर जळनी धारा करती होय तेम हाथमां कुंभ लइने बे देवांगनाओ काढेली छे. गेंडीनुं चिन्ह छे. आ आकृतिमां ११ मा तीर्थंकर श्रेयांसनाथ छे. ( २४ ) आ एक उभी नग्न आकृति छे. उपरनी बाजुए (१) नी माफक गायननां साहित्यो सह अप्सराओ उभेली छे. सिंहनु चिन्ह छे. अने छेल्ला एटले २४ मा तीर्थंकर महावीरस्वामीनी आकृति छे. * निम्नगत, जैन कोषकर्ता हेमचंद्रनी कडीओ उपरथी एम जणाशे के उपरोक्त आकृतिओ उपसेली काढवामां अमुक शैली अनुसरवामां आवी ज नथी. केटलीक आकृतिओ पुनः पुनः आवी छे तथा केटलाक तीर्थकरोने काढी नांखवामां आव्या छे. ११ मी अने २० मी आकृतिओमां २१ मा तीर्थंकर नमीनाथ आपवामां आव्या छे. तीर्थकरोने चिन्हो सह कालगणना प्रमाणे गोठववामां आव्या छे. केटलीक* वृषो गजोऽश्वः प्लवग: क्रौञ्चोऽनं स्वस्तिकः शशी । मकरः श्रीवत्सः खड्गी महिषः शूकरस्तथा ! श्येनो वजं मृगच्छागौ नन्दावों घटोऽपि च । कूमो नीलोत्पलं शंख: फणी सिंहोऽहतां ध्वजाः ॥ (श्री हेमचंद्रः) "Aho Shrut Gyanam"

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