Book Title: Prachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 29
________________ तरीके एक अजाण्यो छोडवो छे. बन्ने बाजुए बे घडा तथा सिंहनी आकृतिओ छे. कदाच आ २१ मां तीर्थंकर नमिनाथ होइ शके. (१२) आ (१०) जेवी छे. आनुं चिन्ह स्पष्ट जणातुं नथी. कारण के हालमां तेनी आगळ एक हानी प्रतिमा घालेली छे. आना जेवी बीजी आकृति नथी. ( १३ ) आ ( १ ) ना जेवी छे. चिन्ह- म्होंढुं भांगी गयुं छे. (१४) आ (५) ना जेवी ध्यानी आकृति छे. अहीं चिन्ह तरीके एक मघर छे तेनी बे बाजुए थे सिंहाकृति छे. आ ९ मा तीर्थकर सुविधिनाथनी आकृति छे. (१५) आ ( १४ ) ना जेवी छे. अहीं ( १२) नी माफक चिन्ह उपर एक न्हानी प्रतिमा घालेली छे. आ आकृतिना जेवी बीजी जाणवामां नथी. (१६) आ ( १५ ) ना जेवी छे. सेवकोना हाथमां चामरो छे. चिन्ह भांगी गयुं छे, घणुं खलं ते हरण- हशे. आ १६ मा तीर्थकर शांतिनाथनी आकृति छे. (१७) आ ध्यानी आकृति छे; उपरनी आकृतिओ शोभा माटे छे. चिन्ह भांगी गयुं छे अने ते घेटा, होय तेम जणाय छे. १७ मा तीर्थकर कुंथुनाथनी आकृति छे. (१८) आ ( १५ ) ना जेवी छे. मच्छर्नु चिह्न छे. आना जैवी बीजी आकृति जाणवामां नथी अने कदाच ते कल्पित हशे. कारणके कोई पण तीर्थकरने मच्छर्नु चिह्न नथी. (१९) आ ध्यानी आकृति छे. उपरना भागमां कमळो छे. तेमां पाणीना वासणर्नु चिह छे तेथी ते १९ मां तीर्थकर मल्लीनाथनी आकृति छे. "Aho Shrut Gyanam"

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