________________
प्रथम- परिच्छेद ]
[ S
पर्यायवाला अधिक माना और एक युगप्रधान के युगप्रधानत्व के ४१ वर्षो के स्थान पर ३६ वर्ष हो माने। इस प्रकार उन्होंने अपनी गणना में १३ वर्ष बढ़ा दिये थे जिसका माधुरी वाचना के अनुयायियों को पता तक नहीं था, दाक्षिणात्य संघ दूर निकलने के बाद केवल युगप्रधानत्व काल की ही गणना करता रहा, तब उत्तरीय संघ युगप्रधानत्व के साथ राजत्वकाल का भी परिगरणन करता रहा । इस कारण वह अपनी गणना को प्रामाणिक मनवाने का प्राग्रही था, परन्तु दूसरी पार्टी ने अपनी गणना को गलत मानने से साफ इन्कार कर दिया । फलस्वरूप कालनिर्देश विषयक दोनों की मान्यता के सूचन मूल सूत्र में करने पड़े । माथुरी वाचना को प्रथम से ही मुख्यता दे दी थी । इसलिए प्रथम "माथुरी वाचना" का मन्तव्य सूचित किया गया और बाद में वालभी वाचना का |
कल्प- स्थविरावली में प्रार्य यशोभद्र तक की स्थविरावली पाटलीपुत्र में होने वाली वाचना के पहले की है, तब उसके बाद की संक्षिप्त तथा विस्तृत दोनों स्थविरावलियां, जिनकी समाप्ति क्रमशः " श्रार्यं तापस" श्रीर " आर्य फल्गुमित्र" तक जाकर होती है, ये दोनों स्थविरावलियां दूसरी वाचना के समय यशोभद्रसूरि पर्यन्त की मूलस्थविरावली के साथ जोड़ी गईं थी, और आर्य तापस तथा श्रार्य फल्गुमित्र के बाद की स्थविरों की नामावली प्राचार्य श्री देवद्विगरि क्षमाश्रमण के समय में होने वाले भागमले खन के समय पूर्वोक्त सन्धित पट्टावली के अन्त में जोड़ दी गई हैं ।
पहली वाचना हुई तब भूतकालीन स्थविरों की नामावली सूत्र के साथ जोड़ी गई । दूसरी वाचना के प्रसंग पर उसके पूर्ववर्ती स्थविरों की नामावली पूर्व के साथ मनुसन्धित कर दी गई, और देवद्विगरिण क्षमाश्रमण के समय में द्वितीय वाचना के परवर्ती स्थविरों की नामावली यथाक्रम व्यवस्थित करके श्रन्तिम वाचना के समय पूर्वतन स्थविरावली के साथ जोड़ दी गई है ।
22
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org