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पश्चिमी भारत की यात्रा
को देख कर लेखक के मन पर जो प्रभाव पड़ा वह कभी क्षीण नहीं हुआ अपितु इसने उसकी गिरी हुई दशा को उठाने के लिए उस (लेखक) के मन में उत्साहपूर्ण प्रबल इच्छा को जागृत कर दिया और उस ज्ञान को प्राप्त करने की लगन में दृढ़ता पैदा कर दी कि जिसके बल पर ही वह उसको लाभ पहुंचा सकता था । यह एक लम्बा स्वप्न था; परन्तु, दस वर्ष की व्यग्र आशा के उपरान्त उसे सन्तोष मिला कि वही उस वंश को विनाश के चंगुल से छुटकारा दिलाने और परिणामत: देश के अपेक्षाकृत समृद्ध होने में कारणीभूत हुआ
उस समय लार्ड मिण्टो की अध्यक्षता में अपनी शान्त अथवा यों कहें कि, डरपोक नीति के कारण प्राङग्ल-भारतीय सरकार ने यह निश्चय कर लिया था कि इन रियासतों के आन्तरिक मामलों में किसी भी तरह का दखल देने से दूर रहा जाय और इस कारण राज प्रतिनिधि ( Envoy ) को अपने चारों प्रोर चल रहे उपद्रवों का निष्क्रिय साक्षी मात्र होकर रहना पड़ता था । सन् १८१७ ई० में मार्क इस् हेस्टिंग्स के पिण्डारियों (समाज की रोगग्रस्त अवस्था से उत्पन्न हुई लुटेरों की एक संगठित जमात) को समाप्त करने के निश्चय ने, जिसके कारण उन (पिण्डारियों) के संरक्षणकर्ता मरहठों के साथ उसको व्यापक युद्ध में संलग्न होना पड़ा था, एक छोटी परन्तु सक्रिय सेना की सहायता से उस विशाल लुटेरा प्रणाली को निरस्त कर दिया जिससे कि राजस्थान बड़े लम्बे समय से त्रस्त हो रहा था । चारों ओर के प्रदेश और रियासतों में हमारी सैनिक प्रवृत्तियों के दृश्य उपस्थित हो गए और अब कप्तान टॉड का ज्ञान और अनुभव, जो उसने बहुत बड़ी जोखिम और व्यय उठा कर प्राप्त किए थे, अत्यन्त मूल्यवान् सिद्ध हुए । इन भू-भागों के मानचित्र नहीं थे; मध्य और पश्चिमी भारत का भूगोल, सांख्यिक आँकड़े, और सैनिक सर्वेक्षण के विवरण अज्ञात थे; और हमारे सैनिक अधिकारियों को, जिन्हें बिगड़ी हुई रैयत का सहयोग प्राप्त नहीं था और जिनको तेज़ भगोड़े पिण्डारियों को उनके अड्डों, छुपने के स्थानों और • भूलभुलैयाँ के मार्गों में होकर पीछा करके पकड़ना था, निरन्तर असफल होकर अन्त में नष्ट हो जाना पड़ता यदि एक नवयुवक अधीनस्थ अधिकारी की दूरदर्शिता, सूझबूझ, परिश्रम और जनहित भावना प्राप्त न होती । "भारत में वही एक ऐसा व्यक्ति था, जिसको युद्धस्थल का व्यक्तिगत रूप से समुपार्जित ज्ञान प्राप्त था ।"
उस समय को नाजुक स्थिति में अपनी सेवाओंों का जो लघु विवरण कर्नल
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इतिहास १, पृ० ४६१
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