Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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देवेभ्यः
षष्ठी
देवस्य
चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः (३) प्रातिपदिकात्विभक्तिः एक० द्वि०
भाषार्थ प्रथमा देवः देवी
देव ने। द्वितीया देवम् . देवान् देव को। तृतीया देवेन देवाभ्याम् । देवै: देव के द्वारा। चतर्थी देवाय ..
देव के लिये। पञ्चमी देवात्
देव से। देवयोः देवानाम् देव का/के/की। सप्तमी देवे
देवेषु देव में/पर। सम्बोधन हे देव ! हे देवौ! हे देवा: । हे देव !
आर्यभाषा: अर्थ-(ड्याप्प्रातिपदिकात्) डी-अन्त, आबन्त और प्रातिपदिक से (सु०सुप) सु-आदि २१ प्रत्यय होते हैं। डी से डी. डीए, डीन् प्रत्ययों का ग्रहण किया जाता है। (डीप्) कुमारी। (डीए) गौरी (पार्वती)। (डीन्) शाङ्गरवी (शाङ्गुरव जाति की नारी)। आप से टाप, डाप, चाप् प्रत्ययों का ग्रहण किया जाता है। (टाप) अजा (बकरी)। (डाप) बहुराजा। बहुत राजाओंवाली। (चाप) कारीषग्न्ध्या । करीष के समान गन्धवाले की पुत्री। करीष-शुष्क गोमय (प्रतिपदिक)। देवः । देवौ । देवाः । देवविद्वान्।
__उदा०-शेष उदाहरण संस्कृत भाग में देख लेवें। (१) डी-अन्त
सिद्धि-(१) कुमारी । कुमार+डी । कुमार+ई। कुमारी । कुमारी+सु। कुमारी।
यहां प्रथम 'कुमार' शब्द से 'वयसि प्रथमें' (४।१।२०) से डीप् प्रत्यय है। डी-अन्त कुमारी शब्द से इस सूत्र से सु' प्रत्यय है। हल्ड्याब्भ्यो दीर्घात्०' (६।१।६६) से 'सु' प्रत्यय का लोप होता है।
(२) कुमार्यो । कुमारी+औ। कुमार्यो।
यहां 'कुमारी' शब्द से 'औ' प्रत्यय और 'इको यणचि' (६।११७७) से 'यण' आदेश होता है।
(३) कुमार्य: । कुमारी+जस् । कुमारी+अरु । कुमारी+अर् । कुमारी+अ: । कुमार्यः ।
यहां कुमारी' शब्द से जस्' प्रत्यय ससजुषो रुः' (८।२।६६) से रुत्व, खरवसानयोर्विसर्जनीय:' (८।३।१५) से विसर्जनीय और पूर्ववत् 'यण' आदेश है।
(४) कुमारीम् । कुमारी+अम् । कुमारीम्।
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