________________
X : पुरोवाक् में दिये गए अनुवादादि जहाँ इसे हिन्दी अथवा आंग्लभाषा जानने वालों के लिये उपयोगी बनाते हैं वहीं दोनो भाषाओं पर समान अधिकार रखने वाले विद्वानों के लिये भी इसका तुलनात्मक दृष्टि से मूल्यांकन करने में सहायक होते हैं।
ग्रंथ के अंत में दिये गए परिशिष्ट भी अत्यंत उपयोगी हैं तथा वे पाठकों की जिज्ञासा को कुछ हद तक शान्त व काफी हद तक और जागृत करने में समर्थ होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।
अंत में मैं लेखकों का इस अत्यंत उपयोगी ग्रंथ के प्रणयन के लिये साधुवाद करता हूँ तथा आशा करता हूँ कि उनकी लेखनी अविराम गति से ऐसे अनेक ग्रंथों के प्रणयन की माध्यम बनेगी।
शुभं भवतु!
- प्रो. सागरमल जैन
प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर (म. प्र.) मकर संक्रान्ति, १४ जनवरी, २००६.