________________
नियमसार
मार्गो मार्गफलमिति च द्विविधं जिनशासने समाख्यातम् ।
मार्गो मोक्षोपायः तस्य फलं भवति निर्वाणम ॥२॥ मोक्षमार्गतत्फलस्वरूपनिरूपणोपन्यासोऽयम् । 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इति वचनात्, मार्गस्तावच्छुद्धरत्नत्रयं, मार्गफलमपुनर्भवपुरन्ध्रकास्थूलभालस्थललीलालंकारतिलकता। द्विविधं किलैवं परमवीतरागसर्वज्ञशासने चतुर्थज्ञानधारिभिः पूर्वसूरिभिः समाख्यातम् ।
परमनिरपेक्षतया निजपरमात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धानपरिज्ञानानुष्ठानशुद्धरत्नत्रयात्मकमार्गो मोक्षोपायः, तस्य शुद्धरत्नत्रयस्य फलं स्वात्मोपलब्धिरिति । गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र
(हरिगीत) जैन शासन में कहा है मार्ग एवं मार्गफल |
है मार्ग मोक्ष उपाय एवं मोक्ष ही है मार्गफल ||२|| जैनशासन में मार्ग और मार्गफलत ऐसे दो प्रकार बताये गये हैं। उनमें मोक्ष के उपाय को मार्ग कहते हैं और मार्ग का फल निर्वाण की प्राप्ति है। इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं ह्न “यह मोक्षमार्ग और उसके फल के स्वरूप के निरूपण की सूचना है, प्रस्तावना है।
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्ष का मार्ग है ह ऐसा महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र का वचन होने से मार्ग तो शुद्धरत्नत्रय है और मार्गफल मुक्तिरूपी रमणी के विशाल मस्तक में अलंकाररूप तिलकपना है । तात्पर्य यह है कि मोक्षमार्ग का फल मुक्तिरूपी रमणी से शादी होना है अर्थात् मुक्ति की प्राप्ति होना है।
इसप्रकार इस मार्ग और मार्गफल ह्न इन दो का व्याख्यान परमवीतरागी सर्वज्ञ भगवान के शासन में चतुर्थ ज्ञान अर्थात् मनःपर्यय ज्ञान के धारी पूर्वाचार्यों ने किया है। ___ निज परमात्मतत्त्व के सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान और अनुष्ठानरूप परम निरपेक्ष शुद्धरत्नत्रयरूप मार्ग मोक्ष का उपाय है और उस शुद्धरत्नत्रय का फल स्वात्मोपलब्धि है।"
इसप्रकार इस गाथा में मात्र यही कहा गया है कि शद्धरत्नत्रय मोक्ष का मार्ग है और मुक्ति की प्राप्ति उसका फल है||२||
इस गाथा की टीका लिखने के उपरान्त मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव खेद व्यक्त करते हए कहते हैं कि सारा जगत तो धन की रक्षा और रमणी की संभाल में व्यस्त है; कोई-कोई पण्डितजन ही ऐसे हैं; जो शुद्धात्मा की साधना करते हैं।