Book Title: Navsadbhava Padartha Nirnay
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(८) (संजहा के० ) ते छकायना नाम कहेछे (पुढवीकाय जायतल काए के०) पृथ्वी कायथी मांडीने यावत् प्रसकाय पर्यत् छजीयनिकाय जाणवा तेहने पीडतां पीडापतां जेम दुःख उपजे तेम दृष्टांत करी देखाडेछे (सेजहाणामए के० ) ते जेमनाम एची संभावनाये (मम के मुजने (अस्साय के) असीता उपजे शाथकी असाता उपजे ते कहेछ (दंडेणषा के०) दंडादिफेकरी हणताथकां (अट्ठीणवा के० ) अस्थिखंडे करी हाडकायें करी (मुहीणवा के०) मुष्टीये करी ( लेलूणवा के०) पापाणे करी (कवालेणवा के०) ट्ठीकरीये करी(श्राउज्झिमाणस्सपाके० आक्रोश करता थकातथा सन्मुख नाखता थका (हम्ममाणसवा के०) अथवा हणाता थका (तज्झिज्झमाणस्सवा के०)तमना करता थका (ताडिज्ममा णस्सवा के०) ताडना करता थका (परियाविज्झमाणस्सवा के०) परितापना करता थका (किलाविज्झमाणसवा के०) किलामणा करता थका (उदविज्झमाणस्सवा कै०) उद्वेग करता थका तथा जीवने कायाथकी रहित करता थला (जावलोमुख्खणरामाय मवि के० ) यावत् शरीर मोहथी एक रोमउखेडवा मात्र एवं पण (हिंसाकारगं के० हिंसानु कारण वेथी पण (दुःख भय पडिर्स घेदमि के० ) दुःख अनेभय हूं घेदुं अनुभवं (इच्चेवंजाण के०) ए. प्रकारे ते जाणे के (सवेजीवा के०) सर्व जीवते सर्व पंचंद्रिय जीव जाणवा (सवभूता के० ) सर्व भूतते सर्व वनस्पति प्रमुखना जीव जाणवा (सम्पाणा के०) सर्वप्राणी ते सर्व वेइन्द्रियादिक विकलेन्द्री जीव जाणवा (सव्वेसत्ता के०) सर्वसत्व ते पृथिव्या. दिक सर्व जीव जाणवा ते जीवोन (दंडेकरी हणती थका (जाबकवालणवा के०) यावत् ठीकरीये करी हणता थकां (बाउहिज्झमाणावा के०) आक्रोश करता थका ( हममाणाचा के० ) हणता थका (तज्झिज्झमाणाया) तर्जना करता थका (तडिझ माणावा के० ) ताडना करता थका (परियाधिज्झमाणावा के) पारतापना करता थका (किलाविज्झमाणावा के०) किलामणा करता थका (उद्दविज्झमारणांवा के०) उद्वेग करता थका तथा जीवने काया थकी रहित करता शका (जावलोमुख्खणणमायं मवि के० यावत एक रोम उखडवा मीत्र एवं पण (हिंसाकार के)

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