Book Title: Navsadbhava Padartha Nirnay Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 9
________________ ( " ण सम्वे जीवा सव्वे भूता सम्वे पाणा सब्वेसत्ता दंडेणवा. जाव कवालेणवा श्रा उट्टिज्ममाणावा हम्ममाणावा तज्झिज्झमाणावा ताडिझमाणावा परियाविज्झमाणावा किलाविज्झमाणावा उद्दषिज्झमाणवा जावलोमुख्खणणमायमावि हिंसाकारगं दुख्खं भयं पडिसंवेदेति एवं नचा सव्वेपाणा जाव सत्ता णहंतबा णअझावेयया परिघेत. व्वा णपरितावेयव्या णउद्दवेयव्वा । सेवेमि जेय. अतिता जेयपडपन्ना जेयागमिस्सामि अरिह: न्ता भगवन्ता सव्वे ते एवमाइख्खंति एवंभासंति एवंपणवेति एवंप्रति सम्वेपाणा जावसवेसत्ता णहतब्वा णअज्झावयब्वा णपरिघेतव्वा णपरितावेयव्वा णउद्दवेयवा एसपम्मे धुवे णीतीए सासए समिचं लोगं खेयन्नेहि वदोंत एवंसे भिख्खू विरते पाणातिवायतो जाव विरते परिग्गहातो णोदंतपख्खालणणं दंतपरूखालेजा णोअं. जणं णोवमणं णोधूवणे णोतं परिश्राविः . एज्झा ॥ इति ॥ अर्थ-(तत्य के० ) त्या कर्मबंधने प्रस्तावे खलु इति वाक्यालंकार (भगवंता के भगवंत श्रीतीर्थकरदेधे (छज्झीवीनकाय हेउ' . .के०) छजीवमीकाय कर्मबंधनां कारण (पणत्ता के०) कहाई॥Page Navigation
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