Book Title: Nandisutram
Author(s): Devvachak, Punyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
हारिमद्री वृत्ति सहित नन्दिसूत्रका विषयानुक्रम । सूत्र विषय पत्र
विषय ७६-७७ पर्यवाग्राक्षरका निरूपण और अतिगाढ
११४ दृष्टिवादका परिमाण और विषय ९२-९३ ज्ञानावरणीयकर्मावत दशामें भी जीवको
११५ द्वादशाङ्गीका विषय अक्षरके अनन्तवे भाग जितने ज्ञानका
११६-१७ द्वादशाडोके विराधोंको हानि और शाश्वतिक सद्भाव
आराधकोंको लाभ
९३-९४ ११-१२ गमिक अगमिक श्रुतज्ञान
११८ द्वादशाङ्गीको शाश्वतिकता
९४-९५ १३-१४ अप्रविष्ट और अङ्गबाह्य
११९ द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव आश्री श्रुतज्ञानका श्रुतज्ञान
स्वरूप अङ्गबाह्य श्रुतज्ञानके दो मेद
१२० गा. ८३ श्रुतज्ञानके चौदह मेद, गा. आवश्यक श्रुत आवश्यकव्यतिरिक्तश्रुतके कालिक उत्का
८४ श्रुतज्ञानका लाभ, गा. ८५ बुद्धिके लिक दो प्रकार
आठ गुण, गा. ८६ सूत्रार्थश्रवणविधि, उत्कालिकश्रुतके २९ नाम
गा. ८७ सूत्रव्याख्यानविधि और नन्दी
७०-७२ वृत्तिम-२९ उत्कालिकसूत्रके नामोंका
सूत्रकी समाप्ति न्युत्पत्त्यर्थविवरण
बन्द्रकुलीन आचार्य श्रीश्रीचन्द्रकालिकश्रुतके ३१ नाम
७२-७३
सूरिप्रणीत नन्दीसूत्रहारिभद्रीवृत्तिमें-कालिकसूत्रके ३१ नामोंका
वृत्तिकी दुर्गपदव्याख्या
९९-१६९ व्युत्पत्त्यर्थविवरण
चन्द्रकुलीन आचार्य श्रीश्रीचन्द्रआवश्यकव्यतिरिक्त श्रुतज्ञानका उपसंहार ७३-७४
सूरिविरचितटीकासहित लघुअङ्गप्रविष्ट श्रुतज्ञानके १२ नाम
नन्दी-अनुशानन्दी
१७०-१७८ १ आचारागसूत्रका स्वरूप
७४-७७ जोगणंदी
१७९-१८१ २ सूत्रकृताङ्गसूत्रका स्वरूप
७७-७९
नन्दीसूत्रहारिभद्रीवृत्तिके विषम३ स्थानाङ्गसूत्रका स्वरूप
पदपर्याय-विषमपद टिप्पनक १८२-१८६ ४ समवायाङ्गसूत्रका स्वरूप
७९-८० १. प्रथम परिशिष्ट
१८७-१८८ ५ व्याख्या[प्रज्ञति] सूत्रका स्वरूप ८०
नन्दीसूत्रान्तर्गत सूत्रगाथाओंकी अकारा६ ज्ञाताधमकथासूत्रका स्वरूप
८०-८२
दिक्रमसे अनुक्रमणिका ७ उपासकदशामसूत्रका स्वरूप
२. द्वितोय परिशिष्ट
१८९-१९४ ८ अन्तकृद्दशाङ्गसूत्रका स्वरूप
८२-८३
नन्दीहारिभद्रीवृत्ति, दुर्गपदव्याख्या और ९ अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्रका स्वरूप
८३-८४
लघुनन्द्यन्तर्गत उद्धरणोंको अकारादि१. पन्नव्याकरणदशामसूत्रका स्वरूप
क्रमसे अनुक्रमणिका । ११ विपाकदशाशसूत्रके दुःखविपाक सुख
३. तृतिय परिशिष्ट
१९५-२.३ विपाक दो प्रकार और उनका स्वरूप
नन्दीसूत्रमूल, हारिभद्रीवृत्ति, दुगपद९८ १२ दृष्टिवादअंगके पांच मेद। ८५
व्याख्या, लघुनन्दीमूल और उसकी ९९-१०७ १ परिकमदृष्टिवादके सात प्रकार
वृत्ति, नन्दीहारिभद्रीवृत्तिविषमपदपर्यायके और भेद
८५-८७
अन्तर्गत विशेषनामोंकी अनुक्रमणिका १०८ २ सूत्रदृष्टिवादके २२ प्रकार
४ चतुर्थ परिशिष्ट
२०३ १०९ ३ पूर्वगतदृष्टिवाद-चौदह पूर्व ८८-८९
नन्दीसूत्रवृत्ति आदिमें स्थित पाठान्तर, ११०-१२ ४ अनुयोगदृष्टिवादके मूलप्रथमानुयोग
मतान्तर और व्याख्यान्तर के स्थान और गंडिकानुयोग दो मेद और इनका
५. पञ्चम परिशिष्ट
२०४-२१६ स्वरूप
८९-९२
नन्दीसूत्र, हारिभद्रीवृत्ति, दुर्गपदव्याख्या वृत्तिम-सिद्धगंडिकाका स्वरूप
आदिमें स्थित शब्दोंका अनुक्रम ११३ ५ चलिकादृष्टिवाद
शुद्धिपत्र
२१७-२१८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org