Book Title: Nandisutram
Author(s): Devvachak, Punyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 234
________________ ८६-१२ किप्प - अनुज्ञा १६६-१ । नन्दीसूत्रमूल-तद्वृत्त्याद्यन्तर्गतानां व्याख्याताव्याख्यातशब्दानामनुक्रमः । २०७ शब्द मूलशब्द-अर्थादि पत्र-पङ्क्ति शब्द मूलशब्द-अर्थादि पत्र-पक्ति शब्द मूलशब्द अर्थादि पत्र-पङ्क्ति उपायपुव्व ८८-२६,२७ कडम्बा __९९- १९ *कालो ओहिणाणि ३०-९,१०,११ उल्का । उका २३-२९,११६-४ कण्ठोष्ठविप्र- कंठोढविप्पमुक्क १७२-१६,१७ *कालओ केवलणाणि ४०-६ दीपिका मुक्त *कालओ विउलमति १८२-२९३० ३५-७,८ उल्लु कतं १४२-२५ उवरिम खुड्डागपतर] ३६-३,६७ [मणपज्जवणाण कथन कहण १५-९१० +उवसंप-= दृष्टिवादप्रविभाग *कालओ सम्मसुय ६५-२६ २७ जणावत्त कालचक्र-चक्क ६६-१०तः६७-५ कप्पिया । ७३-२२ उवासगदसा कालतः केवल- कालओ केवल- ४०-११ कल्पिका ८२-७तः१९ शानिन् णाणि *कम्मप्पवाद-वाय उष्णयोनिक उसिणजोणिय १००-११,१३ कालतोऽवधिज्ञा- कालओ ३०-२२, कम्मप्पवाय ८९-८:१६७-२ उस्लप्पिणी ६६-१२तः६७-४ निन् ओहिणाणि २३ ऋजु उज्जु ३४-२४ कालवादिन *कम्मयावुद्धि ४७ १०,११ ऋजुमति मन:- उज्जुमति ३४-२३,२४, *कालाणुण्णा १७८-१.२३ पर्ययज्ञान [मणपजवणाण] २६,२५, +करकचअ - कच १३६-४ कालानुशा कालाणुण्णा १७८-४,५,६ १२१-२०तः२७ करण करण ११-२१तः२३ *कालिओवएस [सण्णि, ६०-२४ ऋजुसूत्र उज्जुसुय १७३-१५.१६ ७५-१४,१५ असपिण] ऋद्धि करणशक्ति करणसत्ति तः२६ ३४-१७ ६१-१८ कालिक कालिय ७०-१५,१६१-३०,३१ एकसिद्ध एगसिद्ध कर्णिका कणिया ६-२४१०१-११ कालिकोप- कालिओव- १५४-२४,२५ एकाधिकरणत्व १४५-८ कर्म = अनाचार्यक नित्यव्यापार- ४७-२५, देशसंझिन् एससण्णि +एगगुण = दृष्टिवादप्रविभाग ८५-२४; रूप २६;१२३-१५,१७,१८ कालिकोप- कालिओवएस १५४-२५ कर्मक्षयसिद्ध ८६-१,४,७,११,१५,१९ १२३-२२ देशासंझिन् असण्णि +पगट्टियपय , ८५-२३,२७ कर्मजा बुद्धि] कम्मयाबुद्धि ४७-२५ २६; कालिक्युपदेश+ कालिओव- ६०-२७तः +एगसिद्ध ३८-२४ ४८-२२तः२७ संझिन् , एस+सण्ण, ६१-१२ +पगंतसूसमा ६६-१२तः२१ कर्मभूमि कम्ममूमि ३३-२५,२७ श्रसंझिन् असण्णि +पहर = इयद्दर १३७-२६ कर्मसिद्ध १२३-१४ काष्ठकर्म कट्ठकम्म १७०-२२,२३ +एवंभूय = दृष्टिवादप्रविभाग ७०-२६ कल्पश्रुत ८७-११ कापसुय + किमिण+त्तण = कृपणत्व १४२-२४,२५ ऐकान्तिक ९९-३,१८२-७ कल्पाकल्प कप्पियाकप्पिय ७० कुक्षि कुच्छि २९-२० +ोगाढावत्त दृष्टिवादप्रविभाग ८६-८ कल्पावतंसिका कप्पडिसिया ७३-२२, कुड + ग १०२-२५; ओग्गह १५०-१८ १०४-१८,३१,१६०-२१ कल्पिका । ७३-२२ ओघश्रुत ओघसुय १४-८ कप्पिया । * कुप्पावयणिया जाणग- १७६-१५तः ओघसंज्ञा १५३-२३ सरीर-भवियसरीरवतिरित्ता २७ +कविल = शास्त्र ६४-२० +$ओरुम्मुह = उपरिमुख १३९-२० दवाणुण्णा +कतावित =कर्तित ओसप्पिणी १३४-३० ६६-१२तः६७-४ अकुप्पावयणिया भावाणुण्णा १७८-११. औत्पत्तिकी उप्पत्तिया ४७-२३,४८-४ काययोग ३७-२५ १२ कारक करग १२-७ [बुद्धि] (बुद्धि] तः८,१३२-२३ १६०-२१ कारण कारण औदारिकशरीरमध्य- ११६-१ ९३-१९ +कुलगरगंडिया ९०-१०११गत[अवधिज्ञान] *कालओ आभिणिबोहियणाणि ५५-२१ कुवलय कुवलय १२-२९तः१३-१ औदारिकशरीरान्तर्गत ११५-३०,३१ *कालओ उज्जुमति कृचिका कूचिया १०६-१९,१८२-३२ [अवधिज्ञान] [मणपजवणाण] ६,७ कूड ७९-१९ २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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