Book Title: Nandanvan Kalpataru 2005 00 SrNo 14
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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वसुनिधि(९९)प्रमितस्वनन्दनान्, 'कुरुत सङ्गर' मित्थमुपादिशत् ।
सकलसत्त्वहिताय जिनाय ते, भगवते ऋषभाय नमो नमः ॥५॥
स्वसुतबाहुबलिं तनयामुखाद्, 'गजत उत्तर वीर' वचस्त्विदम् ।
प्रहितवान् भगवान् य इनाय ते, भगवते ऋषभाय नमो नमः ॥६॥
समसहस्रतपश्चरणार्जितं, विमलके वलरतमुपाहरत् ।
स्वजननीकरयोर्य उपांशु ते भगवते ऋषभाय नमो नमः ॥७॥
های کومها که به کوه کوهی که د
भविकलोकचकोरहिमांशये, दुरितसन्तमसौघखरांशवे !
शमवते भवतेऽनुपमाय ते, भगवते ऋषभाय नमो नमः ॥८॥
इति मया गुरुदेवपदाम्बुजभ्रमरहेमसुधाकरसूरिणा ।
प्रथमतीर्थपतिः स्तुतिगोचरो, विहित ईप्सितदानसुरद्रुमः ॥९॥
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