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जैसे-जैसे निरंजन का भाव उमड़ता चला जाएगा, वैसे-वैसे हमारे भीतर का कल्मष स्वतः धुलता चला जाएगा ।
आदमी अज्ञान की अवस्था में पाप करता है, ज्ञान की अवस्था में कोई आदमी पाप नहीं करता । अज्ञान अवस्था में रखा गया गलत कदम ही पाप है | ज्ञान-दशा में रखा गया सही कदम ही पुण्य है। अगर कोई आदमी जानता है कि नशा करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, फिर भी नशा करता है, तो यह उसकी मूर्च्छा है । जानना अलग बात है और उससे छूट जाना अलग बात है। पढ़ लेने भर से ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। ज्ञान तो वह है, जो अनुभव से मिले । आत्मज्ञान का उदय हो जाने के बाद जीवन में कभी - कोई पाप नहीं होता । भले ही किसी की नजर में ज्ञानी द्वारा किया जाने वाला कृत्य अनुचित हो, लेकिन ज्ञानी के लिए तो वह भी एक पुण्य कृत्य है । ऐसा नहीं कि आत्मज्ञान पाने के बाद जनक ने राजमहलों में दिन न बिताए, राजरानियों के बीच न रहे । आत्मज्ञान पाने के बाद अनासक्ति आविर्भूत होती है, वीतराग - विज्ञान घटित हो जाती है, जिसके बाद कमल रहता तो कीचड़ में है, मगर फिर भी दोनों के बीच एक फासला कायम हो जाता है। इसी दूरी का नाम निर्लिप्तता है, साधना है।
ज्ञान में पाप भी पुण्य हो जाता है और अज्ञान में पुण्य भी पाप हो जाता है । हजारों वर्षों तक अज्ञान - अवस्था में किए गए पाप, पाप रहते हैं, लेकिन जाग्रत अवस्था में किया गया थोड़ा-सा पुण्य ही हजारों वर्षों में किए गए पापों को धो डालता है । डाकू अंगुलीमाल के जीवन की घटना है। कहा जाता है कि अंगुलीमाल भगवान बुद्ध के सामीप्य से भिक्षु हो गया। डाकू रूप में उसने सैकड़ों लोगों को मारा था और उनकी अंगुलियों की माला बनाई थी, इसलिए स्वाभाविक था कि उसके उतने ही शत्रु होंगे ।
अंगुलीमाल बुद्ध के सान्निध्य में बैठा था । उनके पास और भी कई शिष्य आसीन थे। तभी सम्राट प्रसेनजित का आगमन हुआ । सम्राट ने प्रणाम किया और शिष्यों के बगल में बैठ गया । उसने बुद्ध से पूछा- भंते, मैंने सुना है कि कल आपकी डाकू अंगुलीमाल से भेंट हुई ! बुद्ध ने कहा- हां वत्स, कल मेरा उससे मिलना हुआ था। 'तो क्या उसने आप पर तलवार नहीं उठाई ?' प्रसेनजित ने पूछा । बुद्ध ने कहा- हां, उसने मुझ पर तलवार उठाई। राजा ने फिर पूछा- तो क्या आप पर प्रहार भी किया? बुद्ध मुस्कराए और कहने लगे-उसने चेष्टा तो की थी, मगर उसका प्रहार उसी पर जा लगा। 'तो क्या वह अब डाकू नहीं रहा?' राजा ने पूछा । बुद्ध ने जवाब दिया-हां राजन, अब वह डाकू नहीं रहा, भिक्षु हो गया है। जो ठीक मेरी बगल में बैठा है, वही है भिक्षु अंगुलीमाल । इस बात की चर्चा सारे शहर में फैल गई कि डाकू अंगुलीमाल भिक्षु हो गया है ।
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