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किसान अगर खेत जोतता है, तो झट से चाबुक चला देता है। आत्मज्ञानी व्यक्ति ऐसी भूल नहीं करता। आत्मज्ञानी जनक भी कृषि-कार्य करते थे। वे जब हल जोतते थे, तो एक तरफ बैल होता था, तो दूसरी तरफ स्वयं जुतते थे। जो व्यक्ति बैल और मुनष्य के भीतर एक समान आत्मा मानता है, वह आत्मज्ञानी व्यक्ति भोग के द्वार पर भी पहुंचकर सदा-सदा निर्लिप्त, निस्पृह और अनासक्त बना रहता है।
ऐसा नहीं है कि भोग की प्रकृति उदय में न आएगी, भोगावली कर्म तो उदय में आएंगे ही। एक व्यक्ति भोग-भोगकर उन्हें और पुष्ट करता रहता है, दूसरा इतने होश से, इतने साक्षित्व से भोगता है कि उसके द्वारा प्रवृत्ति होने के बावजूद प्रवृत्ति न हुई कहलाएगी। ज्ञानी का भोग भी कर्म-संस्कार को शिथिल करने वाला होता है। वह कर्ता-भाव से मुक्त होता है। परिणामतः वह कर्म-फल का भोक्ता नहीं होता। एक व्यक्ति वह है, जो वासना एवं भोग की अभिलाषावश भोग के प्रति उद्यत रहता है, दूसरा वह है, जो भोग का द्रष्टा बनकर भोग की वृत्ति से मुक्त हो जाता है। जनक कहते हैं कि ज्ञानी के कार्य की तुलना मूढ़ पुरुष के कार्य के साथ कैसे की जा सकती है। चलने में तो रहट भी चलता है और गन्ना पेरने की चर्बी भी, मगर दोनों के चलने में बड़ा फर्क है। एक तो गन्ने को हरा करता है, दूसरा गन्ने को पेर कर छूतों का ढेर लगा देता है। ज्ञानी-अज्ञानी के कर्म में यही अंतर है। __ ज्ञानी मृत्यु के समय भी हंसता है, अज्ञानी जिंदा रहते हुए भी रोता है। ज्ञानी के पास कुछ न हो, फिर भी पुलकित रहता है, अज्ञानी सब कुछ होते हुए भी चिंतित रहता है। ज्ञानी संसार को नाटक समझता है, अज्ञानी नाटक को भी यथार्थ मान बैठता है। यही तो फर्क है। बस, ज्ञानी की पहचान यही है कि जहां कर्ता-भाव गिर जाए साक्षी-भाव का सर्वोदय हो जाए। जो, जैसी परिस्थिति आ गई, बगैर किसी ननुनच के उससे गुजर गए। विपरीत परिस्थिति में खिन्न न हुए, अनुकूल परिस्थिति में रागासक्त न हुए। जन्म हुआ, तो थालियां न बजीं। मृत्यु हुई, तो छाती न पीटी। मृत्यु का गम नहीं। मृत्यु का भी उसी मुस्कान से स्वागत हो, जैसा कि हमने जन्म का किया था।
प्रतिकूलताएं भला किसके जीवन में न आएंगी। नानक हो या कबीर, बुद्ध हो या महावीर, राम हो या रहीम, किंतु जो सदाबहार मुस्कान का स्वामी हो गया, उसे मृत्यु भी बाधित नहीं कर सकती।
हर व्यक्ति सदाबहार प्रसन्न रहे। वह कर्म का कर्ता-भोक्ता नहीं, कर्म का साक्षी भर रहता है। वह हर उलटफेर के बीच निश्चित रहता है। वह नियति के हर कृत्य का स्वागत करता है। वह मस्त रहता है, हर हाल में मस्त! जब, जहां,
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