Book Title: Na Janma Na Mrutyu
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 72
________________ बने रहो। एक बात सदा याद रखना कि चाहे धर्म हो या अधर्म, नैतिकता हो या अनैतिकता, प्रामाणिकता हो या बेईमानी-सबका आधार दृष्टि पर टिका हुआ हैं। बाह्य परिवर्तन भर से आदमी के भीतर की आंखें कभी परिवर्तित नहीं होतीं। तुम बाहर से अपने चरित्र और व्यवहार को कितना ही क्यों न बदल लो, वह बाहरी बदलाव भीतर परिवर्तन के बिना अपूर्ण और बेमानी है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुमने इस वर्ष क्रोध न किया, मुख्य बात यह है कि अब भी क्रोध की कोई तरंग तुम्हारे में शेष है या नहीं। एक आदमी मांस खाता है, इसलिए आप उसे हिंसक कहेंगे, जबकि अष्टावक्र की भाषा कुछ भिन्न होगी। वे कहेंगे कि मांस खाने के कारण आदमी हिंसक नहीं है, बल्कि आदमी हिंसक है, इसलिए मांस खाता है। हमने अब तक उसी चरित्र को समझा है, जो बाहर से आरोपित किया जाता है और यहां अष्टावक्र उस चरित्र की प्रेरणा दे रहे हैं, जो हमारे भीतर से निखर कर आ रहा है। आदमी दमन करता है। आदमी के भीतर क्रोध, कषाय, काम, विकार भरे पड़े हैं, लोक-व्यवहार के चलते वह इनको भीतर धकेलता है, बाहर आने से रोकता हैं। इनको अभिव्यक्त करना गलत है, तो भीतरी दमन भी गलत ही है। विचारों की तरह आप अपनी संतान को भी दबाते हैं। आप उन पर अवांछित प्रतिबंध लगाकर उनके नैसर्गिक विकास को ही अवरुद्ध नहीं करते, वरन् उनके भीतर एक आक्रोश को भी जन्म देते हैं। उनकी अंतर्दृष्टि, उनका मानस कैसे परिवर्तित किया जाए, इस ओर हमारा ध्यान नहीं है, इसके प्रति सजगता नहीं है। अंतर्मन के परिवर्तन के बिना ऊपर से लादा गया नियम और तर्क ऊपर-ऊपर ही ठीक है। भीतर का जहर कब उगल आए, पता नहीं चलता। ___मैंने सना है-एक केकडे और बिच्छ के बीच बडी गहरी दोस्ती थी। एक दिन बिच्छू ने केकड़े से कहा-मित्र, आज तो मन में नदिया की सैर करने की इच्छा हो रही है। तुम मुझे इस किनारे से उस किनारे पर ले चलो। केकड़े ने कहा-बिच्छू भाई, मैं रहा केकड़ा और तुम ठहरे विषैले जीव । तेरे और मेरे बीच मित्रता है, यह तो ठीक है, पर मैं तुम्हें उस तट पर कैसे पहुंचाऊंगा। बिच्छू ने कहा-तुम अपनी पीठ पर मुझे बिठा लो और नदिया पार करवा दो। केकड़े ने आशंका जताई कि अगर तू मेरी पीठ पर आकर बैठा और डंक मार दिया तो? बिच्छू ने कहा-मैं और तुम्हें डंक मारूं। अव्वल तो तू मेरा दोस्त है और फिर तेरी मौत मेरी मौत का भी तो कारण बनेगी। केकड़े ने जवाब दिया-बात तुम्हारी तर्कसंगत और व्यावहारिक है। आओ, मेरी पीठ पर बैठ जाओ। 71 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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