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कहते हैं- कपिल ब्राह्मण पत्नी की इच्छापूर्ति के लिए दो तोला सोना मांगने घर से निकला। देववशात सिपाहियों ने उसे पकड़ कर राजा के सामने पेश कर दिया। राजा ने ब्राह्मण की विवशता समझी और दया करके उसे इच्छानुसार सोना मांग लेने को कहा। कपिल की स्पृहा इतनी बढ़ी कि वह दो तोले से सौ तोले, फिर एक हजार तोले, फिर एक करोड़ तोले की इच्छा करता हुआ अंततः सारा साम्राज्य मांगने का विचार कर बैठा। राजा ने उसे विचार मग्न देख पुनः इच्छित वस्तु मांगने को कहा। मन के लोभ से कपिल को इतनी ग्लानि हुई कि उसने कुछ भी मांगने से मना कर दिया और राजसभा से यह सोचते हुए लौट आया कि जो मन करोड़ों तोले सोने से शांत नहीं हुआ, वह साम्राज्य पाकर क्या शांत हो जाएगा। कभी नहीं। इच्छाओं का कोई अंत ही नहीं है।
संत वह है, जिसकी स्पृहा, इच्छा शांत है। इच्छा-मुक्त व्यक्ति स्वतः ही संसार से मुक्त हो जाता है। वह तो प्राप्ति में संतुष्ट रहता है। अप्राप्ति में वह बौखलाता नहीं। वह चिंतित नहीं होता। भोग-विलासिता में रस नहीं होता। इच्छा-मुक्त पुरुष इंद्रियों की आसक्ति से ऊंचा उठ जाता है। वह अंतर-मौन में जीता है। जो अंतर-लीन है, स्थितप्रज्ञ है, स्वाभाविक है कि वह इच्छा-मुक्त होता है। उसकी इच्छा और स्पृहा स्वतः गिर जाती है। जनक आगे कहते हैं
अन्तर्विकल्प शून्यस्य, बहिः स्वच्छन्दचारिणः।
भ्रान्तस्येव दशास्तास्ताः तादृशा एव जानते ॥ अर्थात जो भीतर विकल्प से शून्य है और बाहर से भ्रांत हुए पुरुष की भांति स्वछंदचारी है, ऐसे पुरुष की भिन्न-भिन्न दशाओं को वैसे ही दशा वाले पुरुष जानते हैं।
जनक ने कहा कि आत्मज्ञानी आदमी के भीतर और बाहर के व्यवहार की बात तो हो गई, लेकिन आत्मज्ञानी व्यक्ति को जानेगा कौन कि यह आत्मज्ञानी है? उसके व्यवहार को समझेगा कौन कि उसका व्यवहार प्रमोदवश है? उन्नत दशा का व्यक्ति ही जान सकता है कि अमुक व्यक्ति की दशा उन्नत है। जो व्यक्ति केवल सांसारिक दृष्टिकोण से जानेगा, वह उसको केवल सांसारिक ही समझेगा। वह नहीं समझ पाएगा कि कृष्ण के द्वारा की गई रास-लीलाएं मात्र रास-लीलाएं थीं या कुछ और? आदमी तो कृष्ण में ही संदेह कर लेगा। वही व्यक्ति जान सकता है, जो उस स्थिति को उपलब्ध है। वही जानेगा कि इसके व्यवहार के भीतर रहने वाला परम सत्य क्या है।
__ एक प्रेमी ही प्रेम का माधुर्य, प्रेम की मिठास को जान सकता है; भक्त ही भक्त को समझ सकेगा। राणा क्या समझेगा मीरा को! मीरा को समझने के लिए किसी कबीर को जन्म लेना होगा, गोरखनाथ बनना होगा।
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