Book Title: Na Janma Na Mrutyu
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 114
________________ उधार का ज्ञान काम नहीं आता, मौलिक ज्ञान चाहिए । बाह्य प्राप्त ज्ञान, विचार, तर्क-वितर्क, भ्रम-संदेह की चट्टानें जब किनारे फेंक दी जाएं, तो आत्मज्ञान का सोता, स्वयं का निर्झर स्वतः फूट पड़ता है । किताबी ज्ञान गोद लिया बच्चा है और आत्मज्ञान हमारी अपनी प्रसूति है । ज्ञान मनुष्य के मस्तिष्क को भरने के लिए नहीं होता, वरन् जन्म-जन्म से जिस अज्ञान को हम सिंचित करते आ रहे हैं, उस अज्ञान की पहचान के लिए, उस अज्ञान के ज्ञान के लिए ही व्यक्ति ज्ञान - मार्ग की ओर बढ़ता है । वह व्यक्ति ज्ञानी नहीं है, जिसने सौ-सौ शास्त्र पढ़े हैं। ज्ञानी तो वह व्यक्ति है, जिसने अपने भीतर छिपे अज्ञान को पहचाना है । कहते हैं-यूनान की एक देवी डेल्फिन की आराधना के लिए पूरा यूनान उमड़ा करता था । सालाना मेला लगता, जिसमें देवी डेल्फिन प्रक्ट होतीं और कुछ चमत्कारिक भविष्यवाणियां किया करतीं। एक बार जब देवी प्रकट हुईं, तो लोग एकत्र हुए और उन्होंने पूछा-इस युग में सबसे बड़ा ज्ञानी व्यक्ति कौन है ? देवी ने कहा- जिस नगर में तुम इस मेले का आयोजन करते हो, उसके बाहर एक ज्ञानी पुरुष रहता है, जिसका नाम सुकरात है । इस वक्त वह सर्वोपरि ज्ञानी व्यक्ति है । सारी भीड़ सुकरात के पास पहुंची। सुकरात अपनी मस्ती में बैठा हुआ था । सबने देवी डेल्फिन की बात की जानकारी दी । सुकरात ने कहा- लगता है देवी के कहने में या तुम्हारे सुनने में कुछ चूक हुई है। हां, एक वक्त था, जब तुम चाहते तो मैं अपने को ज्ञानियों का सिरमौर साबित कर देता, पर अब मेरे पास ज्ञान नहीं है। सच तो यह है कि मुझ-सा अज्ञानी और कोई न होगा। लोग फिर देवी डेल्फिन के पास पहुंचे और सुकरात की कही हुई बात सामने रखी। देवी ने कहा- वही व्यक्ति तो असली ज्ञानी है, जिसने अपने अज्ञान को पहचान लिया है। जैसे ही व्यक्ति अपने अज्ञान को पहचान लेता है, तत्क्षण उसके जीवन में ज्ञान की किरण फूट पड़ती है। जब तक अपने अज्ञान का बोध नहीं होगा, अपने चित्त पर जमे हुए अज्ञान को तुम नहीं पहचान पाते, तुम्हारे जीवन में ज्ञान के नाम पर अज्ञान का अंधकार ही होगा, जिसे तुम ज्ञान की ज्योति कहते हो, वह तो ज्ञान के नाम पर पलने वाला छलावा है, प्रवंचना है । Jain Education International साधना के पथर पर फिर से कदम बढ़ाइए । अपने को पहले बिल्कुल खाली बनाइए । कूप ऊपर का पानी, लेना न चाहता । अंदर के झरनों से वह खुद भर जाता । व्यर्थ के विकल्पों में गोते न खाइए। 113 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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