Book Title: Na Janma Na Mrutyu
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 106
________________ जीवन-मुक्ति के लिए पहला सूत्र ही चित्त की शून्यता है। जनक गुनगुनाते हुए निवेदन करते हैं क्व धनानि क्व मित्राणि, क्व में विषयदस्यवः । क्व शास्त्र क्व च विज्ञानं, यदा मे गलिता स्पृहा ॥ अर्थात जब मेरी स्पृहा नष्ट हो गई, तो कहां धन, कहां मित्र, कहां विषयरूपी चोर हैं! कहां शास्त्र और कहां ज्ञान है! __ जनक कहते हैं- जिसका चित्त शुन्य हो चुका है और जिसकी इच्छा नष्ट हो चुकी है, उसके लिए धन, मित्र और विषयों की क्या अहमियत; उसके लिए कोन-सा शास्त्र है, कौन-सा ज्ञान हैं। वह तो सदा-सदा अपने आप में तृप्त है। जिसकी इच्छा नष्ट हो चुकी है, वह जगत से स्वतः ही मुक्त हो जाता है। जब आदमी जगत में इच्छाओं से घिरता है, तो एक जुनून, एक पागलपन सवार होता है। स्पर्धा का, प्रतिस्पर्धा का। जहां पर इच्छा है, वहीं पर दौड़ है, वहीं पर गलाघोंट संघर्ष है, दूसरे को दबाने की प्रवृत्ति है। धन की दौड़ ही इच्छा से जुड़ी हुई है। तुम इसीलिए धन के पीछे दौड़ते हो कि तुम्हारे मन में धन की इच्छा है। जिसकी स्पृहा गिर गई, उसकी स्पर्धा गिर गई; वह व्यक्ति सदा-सदा तृप्त रहेगा। वह जान जाएगा कि धन कहीं बाहर नहीं, मेरे भीतर ही है, जिसे उपलब्ध किए बिना मैं सदा-सदा निर्धन ही रहूंगा। उस व्यक्ति का काई मित्र भी नहीं होता, जिसकी इच्छा नष्ट हो गई। व्यक्ति मित्र तभी बनाता है, जब वह औरों में सुख और आनंद तलाश करता है। जिसने अपना आनंद अपने में तलाशा है, वह किसी और को अपना मित्र नहीं बनाता, वह अपना मित्र स्वयं होता है। जिसकी इच्छा गिर गई, उसके लिए विषय रूपी चोर बचते ही कहां हैं! विषय जडे हए ही मनुष्य के मन की इच्छाओं से हैं। जिसका मन मिट चुका है, क्या उसकी विषयों के प्रति आसक्ति भला शेष रहती है ? विषयों के प्रति होने वाली आसक्ति ही व्यक्ति का संसार है और विषयों के प्रति होने वाली अनासक्ति ही व्यक्ति का निर्वाण है। विषयों के गिरने का अर्थ विषयों से भागना नहीं है। महावीर ने भी विवाह किया, उनके भी संतान हुई; बुद्ध ने भी विवाह किया, उनके भी संतान हुई; राम ने भी विवाह किया, उनके भी संतानें हुईं। न तो उनके लिए धन बाधक बना, न उनके लिए मित्र बाधक बने और न विषय ही बाधक बने। मनुष्य के लिए बाधा पैदा ही तब होती है, जब मन में आसक्ति और स्पृहा का जन्म होता है, वरना अलोभ से जिसने लोभ को जीत लिया है, वह व्यक्ति सब कुछ पाकर भी उनसे निस्पृह और निर्लिप्त बना रहता है। 105 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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