Book Title: Na Janma Na Mrutyu
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 70
________________ जब चित्त किसी दृष्टि अथवा विषय में लगा है, तब बंध है, चित्त का लगना ही बंध है। चित्त का न लगना ही मोक्ष है। जरा टटोलें कि हमारा चित्त कहां-कहां लगा है, किस-किस से लगा है। चित्त का किसी से लगना ही आसक्ति है। यही राग है। अपने से अपना अतिक्रमण है। चित्त किसी से न लगा, चित्त, चित्त में ही आसीन रहा, तब अनासक्ति है। साफ शब्द में यही मोक्ष है। __ आप संसार में रह रहे हैं, पर ऐसे रहें कि जैसे जल में कमल हो। कार्य और कर्तव्य पूरे करें। कार्य भी हमारी पूजा और प्रार्थना हो जाए, पर अगर कार्य के प्रति आसक्त हो गए, तो वह हमारी पूजा भी हमारे लिए बंधन हो जाएगी। हम मोक्ष को जिएं। अभी और आज जिएं। मरणोपरांत मिलने वाले मोक्ष के बजाए वर्तमान को मोक्ष का पर्याय बनाएं। सबके साथ रहें, पर चित्त से प्रतिक्रिया-शून्य केवल साक्षी चेतना में स्थित रहें। साक्षी चेतना ही मुक्त है। जो निर्लिप्त है, वह संन्यासी है। जो लिप्त है, वह संसारी है। यही अष्टावक्र का आज का संदेश है। 69 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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