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हुआ। उसने अपना जीवन-वृत्तांत मुझे सुनाया। उसे हिजड़ा और नपुंसक जैसे शब्दों को सुनने में कोई गिला नहीं है। जिस आदमी ने अपने मुंह पर अपने आपको हिजड़ा कहलाना स्वीकार कर लिया है, उस आदमी के जीवन में चाहे निंदा हो या प्रशंसा, भाव हो या अभाव, वह दोनों ही स्थितियों में समदर्शी रहता है।
भाव और अभाव होना या न होना, ये सब तो पानी में उठने वाले बलबले हैं। ये स्वभावतया उठते रहते हैं, मिटते रहते हैं। अब अगर भाव-अभाव के विकार उठ भी आएं, तो भी चिंतित मत होइए और आपसे कोई कर्म हो भी गया, तो ग्लानि मत कीजिए। जो हुआ, सो हुआ। होना था, सो हो गया। जो हुआ, वह होना ही था। होनहार हुआ, इसमें क्लेश किस बात का। जो जीवन की सारी व्यवस्था को होनहार की व्यवस्था मान लेता है, वह शांत-सुखी रहता है। वह विकार को प्राप्त नहीं होगा। वह खिन्नता और क्लेश से नहीं घिरता। वह साक्षी भर बना रहता है, चेतना का साक्षी। अगला सूत्र है
चिंतया जायते, दुःखं, नान्यथेहेति निश्चयी।
तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः ॥ अर्थात इस संसार में चिंता से दुख उत्पन्न होता है, अन्यथा नहीं, ऐसा जो निश्चयपूर्वक जानता है, वह सुखी और शांत है, उसकी इच्छा सर्वत्र गिर चुकी है, वह चिंता से मुक्त है।
महावीर ने कहा-आदमी मिथ्यात्व के कारण दुखी है। बुद्ध ने कहा-आदमी मूर्छा और अविद्या के कारण ही दुखी है। आचार्य शंकर ने माया को मनुष्य के दुखों का कारण बताया है। अष्टावक्र दुख का एक जीवन-सापेक्ष कारण तलाशते हैं कि मनुष्य के मन में पलने वाली चिंता ही मनुष्य के दुखों का कारण है, उसका आधार है, चिंता यानी मानसिक अस्थिरता; चिंता यानी मस्तिष्क का नकारात्मक रूप; चिंता यानी जीवन में पलने वाला अहंकार का भाव, कर्ता-भाव। ___ चिंता का मूल कारण है वर्तमान से भागना, अतीत या भविष्य में जीना। जीवन को वर्तमान-सापेक्ष बनाओ। जैसा जीवन आज हमें मिला है, उसके बारे में मनन करो और तदनुसार अपने जीवन को आगे बढ़ाओ।
अतीत जो भी रहा है, अतीत में जो भी हुआ, उसे स्मृति में मत लाओ। अतीत का स्मृति में आना ही आसक्ति है और यह आसक्ति ही चिंता का कारण बनती है। जो अभी तक हुआ ही नहीं, उसके बारे में भी व्यर्थ की कल्पनाएं मत करो। आने वाले कल के बारे में ही सोचते रहे, तो इससे तुम्हारी मानसिक क्षमता प्रभावित होगी, बौद्धिक-विकास, अवरुद्ध होगा। जिस आदमी के पास दिन-रात चिंता है, उसके पास न प्रतिभा है, न मेधा है और न ही प्रज्ञा। वह कभी निर्णय कर ही
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