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रहता है। शून्य बनो, अपने आपको आकाश बनाओ। अपने आपको जितना खाली करोगे, उतने ही पूर्ण होते चले जाओगे। शून्य में ही पूर्ण साकार होता है।
जनक ने अहं का त्याग किया, तो जीवन में सर्वम् घटित हुआ। बेहतर होगा आदमी भीतर से स्वयं को निर्लिप्त करता चला जाए। परिवार के बीच जीया, संसार के बीच, लेकिन स्वयं को आध्यात्मिक मार्ग पर रखे।
कर्तव्य कर्मों को करते हए भी स्वयं को उनसे निर्लिप्त रखे। ऐसा व्यक्ति कभी मायूसियों से नहीं घिरता, प्रसन्नता सदाबहार रहती है। यह बात जीवन में बार-बार मनन करने के लिए, आचरण के लिए है, उन्मुक्त आकाश में उड़ान भरने के लिए है।
जैसे धुआं आकाश को नहीं छू सकता, ऐसे ही हम संसार में जिएं कि संसार हमें छू न पाए। संसार में रहकर भी संसार से अस्पर्शित रहें। अस्पर्श-योग को जीना ही कृष्ण की अनासक्ति है, महावीर की वीतरागता है। कैवल्य और समाधि को जीवन में अंकुरित और पुष्पित करने का सही मार्ग है।
आज इतना ही।
नमस्कार।
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