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मोक्षशास्त्र
भरतक्षेत्रका दूसरी तरहसे विस्तार
भरतस्य विष्कंभो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ॥ ३२॥
अर्थ - भरतक्षेत्रका विस्तार जम्बूद्वीपके एक सौ नब्वेवाँ (१९०)
३२०
भागके बराबर है !
टीका
२४ वें सूत्रमें भरतक्षेत्रका विस्तार बताया है उसमें और इसमें कोई अंतर नहीं है मात्र कहनेका प्रकार भिन्न है जो एक लाखके १६० हिस्से किये जाँय तो हरएक हिस्सेका प्रमाण ५२६६योजन होता है ॥३२॥ धातकी खंडका वर्णन
दूर्धातकीखण्डे ॥ ३३ ॥
अर्थ — धातकीखंड नामके दूसरे द्वीपमे क्षेत्र, कुलाचल, मेरु, नदी इत्यादि सब पदार्थोकी रचना जम्बूद्वीपसे दूनी दूनी है ।
टीका
घातकीखण्ड लवरणसमुद्रको घेरे हुए है । उसका विस्तार चार लाख योजन है । उसके उत्तरकुरु प्रान्त में धातकी ( आँवले ) के वृक्ष हैं इसलिये उसे घातकीखण्ड कहते है ॥ ३३ ॥
पुष्करार्ध द्वीप का वर्णन
पुष्करार्द्धे च ॥ ३४ ॥
अर्थ – पुष्करार्द्ध द्वीपमें भी सब रचना जम्बूद्वीपकी रचनासे दूनी दूनी है ।
टीका
पुष्करवरद्वीपका विस्तार १६ लाख योजन है, उसके बोचमें चूड़ीके आकार मानुषोत्तर पर्वत पड़ा हुआ है । जिससे उस द्वीपके दो हिस्से होगये