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अध्याय १० उपसंहार संकोच विस्तार रूप होती थी। अब पूर्ण शुद्ध होने पर संकोच विस्तार नहीं होता । सिद्धदशा होने पर जीवके स्वभावव्यजनपर्याय प्रगट होती है और उसी तरह अनन्तकाल तक रहा करती है।
(देखो तत्त्वार्थसार पृष्ठ ३९८ से ४०६) इसप्रकार श्री उमास्वामी विरचित मोक्षशास्त्रकी गुजराती टीकाका दशवें अध्यायका हिन्दी अनुवाद पूर्ण हुआ ।