Book Title: Moksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Author(s): Ram Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 878
________________ Baluwww.mperlywpsynwwemameer BIPinymmeHINCHHETRIPG सम्यक्त्वकी महिमा श्रावक क्या करे ? हे श्रावक ! संसारके दुःखोंका क्षय करने के लिये परम शुद्ध सम्यक्त्वको धारण करके और उसे मेरु पर्वत समान निष्कंप रखकर उसीको ध्यानमें ध्याते रहो ! [ मोक्षपाहुड़-८६ ] सम्यक्त्वसे ही सिद्धि अधिक क्या कहा जाय ? भूतकालमें जो महात्मा सिद्ध हुए का है और भविष्य कालमें होगे वह सब इस सम्यक्त्वका ही माहात्म्य at है-ऐसा जानो। [मोक्षपाहुड़-८८ ] शुद्ध सम्यग्दृष्टिको धन्य है ! ____ सिद्ध कर्ता-ऐसे सम्यक्त्वको जिसने स्वप्नमे भी मलिन नहो किया है उस पुरुषको धन्य है, वह सुकृतार्थ है, वही वीर है, और वही पडित है। [मोक्षपाहुड़-८६ ] सम्यग्दृष्टि गृहस्थ भी श्रेष्ठ है जो सम्यग्दृष्टि गृहस्थ है वह मोक्षमार्गमें स्थित है, परन्तु मिथ्यादृष्टि मुनि मोक्षमार्गी नहीं है। इसलिये मिथ्यादृष्टि मुनिकी on अपेक्षा सम्यग्दृष्टि गृहस्थ भी श्रेष्ठ है । [रत्नकरंड श्रावकाचार ३३] सम्यक्त्वी सर्वत्र सुखी सम्यग्दर्शन सहित जीवका नरकवास भी श्रेष्ठ है, परन्तु सम्यग्दर्शन रहित जीवका स्वर्गमें रहना भी शोभा नही देता; क्योंकि tआत्मभान बिना स्वर्गमे भी वह दुःखी है । जहाँ आत्मज्ञान है वही 1 सच्चा सुख है। [ सारसमुच्चय ३६ ].

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