Book Title: Moksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Author(s): Ram Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 859
________________ परिशिष्ट १ ७७६ निमित्तादिकी अपेक्षासे उपचार किया है' सो व्यवहारनय है । अथवा पर्यायभेदका कथन भी व्यवहारनयसे कथन है | मोक्षमार्गका दो तरहसे कथन निश्चयव्यवहाराभ्यां मोक्षमार्गो द्विधा स्थितः । तत्राद्यः साध्यरूपः स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् ॥२॥ अर्थ - निश्चयमोक्षमार्ग और व्यवहारमोक्षमार्ग ऐसे दो तरहसे मोक्षमार्गका कथन है । उसमें पहला साध्यरूप है और दूसरा उसका साधनरूप है । १. प्रश्न- - व्यवहारमोक्षमार्ग साधन है इसका क्या अर्थ है ? उत्तर — पहले रागरहित दर्शन - ज्ञान• चारित्रका स्वरूप जानना और उसी समय 'राग धर्म नही या धर्मका साधन नही है' ऐसा मानना, ऐसा माननेके बाद जब जीव रागको तोड़कर निर्विकल्प हो तब उसके निश्चयमोक्षमार्ग होता और उसी समय रागसहित दर्शन-ज्ञान- चारित्रका व्यय हुवा इसे व्यवहार मोक्षमार्ग कहते हैं; इस रीति से 'व्यव' यह साधन है । २ --- इस सम्बन्धमें श्री परमात्म प्रकाशमें निम्नप्रकार बताया हैप्रश्न – निश्चयमोक्षमार्ग तो निर्विकल्प है और उस समय सविकल्प मोक्षमार्ग है नही तो वह (सविकल्प मोक्षमार्ग) साधक कैसे होता है ? उत्तर—भूतनैगमनयकी अपेक्षासे परम्परासे साधक होता है अर्थात् पहले वह था किन्तु वर्तमानमें नही है तथापि भूतनैगमनयसे वह वर्तमान में है ऐसा संकल्प करके उसे साधक कहा है ( पृष्ठ १४२ संस्कृत टीका ) इस सम्बन्ध में छठे अध्यायके १५ वें सूत्रकी टीकाके पाँचवें पैरेमे दिये गये अन्तिम प्रश्न और उत्तरको बांचना | - ३ - शुद्ध निश्चयनयसे शुद्धानुभूतिरूप वीतराग ( - निश्चय ) सम्यक्त्व का कारण नित्य आनन्द स्वभावरूप निज शुद्धात्मा ही है । ( परमात्मप्रकाश पृष्ठ १४५ )

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