Book Title: Moksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Author(s): Ram Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 846
________________ ७६६ मोक्षशास्त्र उत्कृष्टरूपसे एक समयमें १०८ जीव सिद्ध होते हैं। १२-अल्पबहुत्व-अर्थात् संख्यामें हीनाधिकता । उपरोक्त ग्यारह भेदोंमें अल्पबहुत्व होता है वह निम्न प्रकार है (१) क्षेत्र-संहरण सिद्धसे जन्म सिद्ध संख्यात गुरो हैं। समुद्र आदि जल क्षेत्रोंसे अल्प सिद्ध होते हैं और महाविदेहादि क्षेत्रोंसे अधिक सिद्ध होते हैं। (२) काल-उत्सर्पिणी कालमें हुये सिद्धोंकी अपेक्षा अवसर्पिणी कालमें हुये सिद्धोंकी संख्या ज्यादा है और इन दोनों कालके विना सिद्ध हुये जीवोंकी संख्या उनसे संख्यात गुनी है, क्योंकि विदेह क्षेत्रोंमें अवसर्पिणी या उत्सर्पिणीका भेद नही है। (३) गति-सभी जीव मनुष्यगतिसे ही सिद्ध होते हैं इसलिये इस अपेक्षासे गति में अल्पबहुत्व नही है, परन्तु एक गतिके अन्तरकी अपेक्षासे (अर्थात् मनुष्यभवसे पहिलेकी गतिकी अपेक्षासे) तिर्यंचगतिसे आकर मनुष्य होकर सिद्ध हुए ऐसे जीव थोड़े है-कम हैं, इनकी अपेक्षासे संख्यात गुने जीव मनुष्यगतिसे आकर मनुष्य होकर सिद्ध होते है, उससे संख्यातगुने जीव नरकगतिसे पाकर मनुष्य हो सिद्ध होते हैं, और उससे संख्यातगुणे जीव देवगतिसे पाकर मनुष्य होकर सिद्ध होते हैं। (४) लिंग-भावनपुंसक वेदवाले पुरुष क्षपकश्रेणी मांडकर सिद्ध हों ऐसे जीव कम हैं-थोड़े है। उनसे संख्यातगुने भावस्त्री वेदवाले पुरुष क्षपक श्रेणी मांडकर सिद्ध होते है और उससे संख्यातगुरणे भावपुरुषवेदवाले पुरुष क्षपक श्रेणी मांडकर सिद्ध होते हैं। (५) तीर्थ-तीर्थकर होकर सिद्ध होनेवाले जीव अल्प है, और उनसे संख्यातगुने सामान्यकेवली होकर सिद्ध होते हैं। (६) चारित्र-पांचों चारित्रसे सिद्ध होनेवाले जीव थोड़े हैं, उनसे संख्यात गुने जीव परिहार विशुद्धिके अलावा चार चारित्रसे सिद्ध होने वाले है।

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