Book Title: Moksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Author(s): Ram Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 845
________________ अध्याय १० सूत्र ६ ७६५ करते हैं; और द्रव्यवेदमें तो पुरुषलिंग और यथाजातरूप लिंगसे ही मुक्ति प्राप्त होती है। ५-तीर्थ-कोई जीव तीर्थंकर होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं और कोई सामान्य केवली होकर मोक्ष पाते है। सामान्य केवलीमें भी कोई तो तीर्थकरकी मौजूदगीमें मोक्ष प्राप्त करते है और कोई तीर्थंकरोके बाद उनके तीर्थ में मोक्ष प्राप्त करते है। ६-चरित्र-ऋजुसूत्रनयसे चारित्रके भेदका अभाव करके मोक्ष पाते हैं, भूतनंगमनयसे-निकटकी अपेक्षासे यथाख्यात चारित्रसे ही मोक्ष प्राप्त होती है, दूरकी अपेक्षासे सामायिक, छेदोपस्थापन, सूक्ष्मसांपराय, तथा यथाख्यातसे और किसीके परिहार विशुद्धि हो तो उससे-इन पाँच प्रकारके चारित्रसे मोक्ष प्राप्त होती है। ७-प्रत्येक बुद्ध बोधित-प्रत्येक बुद्ध जीव वर्तमानमें निमित्तकी उपस्थितिके बिना अपनी शक्तिसे बोध प्राप्त करते हैं, किन्तु भूतकालमें या तो सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ हो तब या उससे पहले सम्यग्ज्ञानोके उपदेशका निमित्त हो; और बोधित बुद्ध जीव वर्तमानमें सम्यग्ज्ञानीके उपदेशके निमित्तसे धर्म पाते हैं । ये दोनो प्रकारके जीव मोक्ष प्राप्त करते हैं। ८-ज्ञान-ऋजुसूत्रनयसे केवलज्ञानसे ही सिद्ध होता है, भूतनगमनयसे कोई मति, श्रुत इन दो ज्ञानसे, कोई मति, श्रुत, अवधि इन तीनसे, अथवा मति, श्रुत, मन पर्ययसे और कोई मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय इन चार ज्ञानसे ( केवलज्ञानपूर्वक ) सिद्ध होता है। ह-अवगाहना-किसीके उत्कृष्ट अवगाहना कुछ कम' पाँचसी पच्चीस धनुषकी, किसीके जघन्य साढे तीन हाथमें कुछ कम' और किसीके मध्यम अवगाहना होती है । मध्यम अवगाहनाके अनेक भेद हैं । १०-अन्तर-एक सिद्ध होनेके बाद दूसरा सिद्ध होनेका जघन्य अन्तर एक समयका और उत्कृष्ट अन्तर छह मासका है। ११-संख्या-जघन्यरूपसे एक समयमें एक जीव सिद्ध होता है,

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