Book Title: Moksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Author(s): Ram Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 848
________________ ७६८ मोक्षशास्त्र वह स्वर्ग और मोक्षके सुखकी जाति एक गिनता है; स्वर्गमें तो विषयादि सामग्री जनित इन्द्रिय-सुख होता है। उनकी जाति उसे मालूम होती है, किन्तु मोक्षमें विषयादि सामग्री नही है अर्थात् वहाँके अतीन्द्रिय सुखकी जाति उसे नहीं प्रतिभासती-मालूम होती। परन्तु महापुरुष मोक्षको स्वर्गसे उत्तम कहते है इसीलिये वे अज्ञानी भी विना समझे बोलते हैं। जैसे कोई गायनके स्वरूपको तो नही समझता किन्तु समस्त सभा गायनकी प्रशंसा करती है इसीलिये वह भी प्रशंसा करता है, उसीप्रकार ज्ञानी जीव तो मोक्षका स्वरूप जानकर उसे उत्तम कहते हैं, इसीलिये अज्ञानी जीव भी बिना समझे ऊपर बताये अनुसार कहता है। प्रश्न-यह किस परसे कहा जा सकता है कि अज्ञानी जीव सिद्ध के सुखकी ओर स्वर्गके सुखकी जाति एक जानता है--समझता है । उत्तर-जिस साधनका फल वह स्वर्ग मानता है उसी जातिके साधनका फल वह मोक्ष मानता है। वह यह मानता है कि इस किस्मके अल्प साधन हों तो उससे इन्द्रादि पद मिलते हैं और जिसके वह साधन सम्पूर्ण हो तो मोक्ष प्राप्त करता है। इस प्रमाणसे दोनोंके साधनकी एक जाति मानता है, इसीसे यह निश्चय होता है कि उनके कार्यकी (स्वर्ग तथा मोक्षकी ) भी एक जाति होनेका उसे श्रद्धान है। इन्द्र प्रादिको जो सुख है वह तो कषायभावोसे पाकुलतारूप है, अतएव परमार्थतः वह दुःखी है और सिद्धके तो कषायरहित अनाकुल सुख है। इसलिये दोनोंकी जाति एक नही है ऐसा समझना चाहिये । स्वर्गका कारण तो प्रशस्त राग है और मोक्षका कारण वीतराग भाव है । इसप्रकार उन दोनोके कारणमें अन्तर है । जिन जीवोके ऐसा भाव नही भासता उनके मोक्षतत्त्वका यथार्थ श्रद्धान नहीं है। (मो० प्र०) २. अनादि कर्मबन्धन नष्ट होनेकी सिद्धि श्री तत्त्वार्थसार म० ८ में कहा है कि

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