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अध्याय ६ सूत्र ६-१०
५०७ शरीरादिकको धूपसे गरम हुई पीछी आदिसे पोछना तथा शोधना सो उपकरण संयोग है।
निसर्ग-प्रवर्तनको निसर्ग कहते हैं, उसके तीन भेद हैं १-मनको प्रवर्ताना सो मन निसर्ग है, २-वचनोको प्रवर्ताना सो वचन निसर्ग है और ३-शरीरको प्रवर्ताना सो काय निसर्ग है।
नोट:-जहाँ जहाँ परके करने करानेकी बात कही है वहाँ वहाँ व्यवहार कथन समझना। जीव परका कुछ कर नही सकता तथा पर पदार्थ जीवका कुछ कर नही सकते, किन्तु मात्र निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध दिखानेके लिये इस सूत्रका कथन है ॥६॥
यहाँ तक सामान्य आस्रवके कारण कहे; अब विशेष आस्रवके कारण वर्णित करते हैं, उसमें प्रत्येक कर्मके आस्रवके कारण बतलाते हैं
ज्ञानावरण और दर्शनावरणके आस्रवका कारण तत्प्रदोषनिह्नवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता
ज्ञानदर्शनावरणयोः ॥१०॥ अर्थः-[ तत्प्रदोष निह्नव मात्सर्यांतराया सादनोपघाताः ] ज्ञान और दर्शनके सम्बन्धमे करनेमे आये हुये प्रदोष, निह्नव, मात्सर्य, अतराय, आसादन और उपघात ये [ ज्ञानवर्शनावरणयोः ] ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण कर्मासके कारण हैं ।
टीका १. प्रदोष-मोक्षका कारण अर्थात् मोक्षका उपाय तत्त्वज्ञान है, उसका कथन करनेवाले पुरुषकी प्रशंसा न करते हुये अन्तरङ्गमे जो दुष्ट परिणाम होना सो प्रदोष है ।
निह्नव-वस्तुस्वरूपके ज्ञानादिका छुपाना-जानते हुये भी ऐसा कहना कि मैं नहीं जानता सो निह्नव है।
मात्सर्य-वस्तुस्वरूपके जानते हुये भी यह विचारकर किसीको न