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मोक्षशास्त्र यहाँ तेरहवें सूत्रकी टीकाके अनुसार समझना ॥१४॥ अव चारित्रमोहनीयके उदयसे होनेवाली परीपह बतलाते हैं चारित्रमोहेनाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचना
सत्कारपुरस्काराः ॥१५॥ अर्थ-[चारित्रमोहे] चारित्रमोहनीयके उदयसे [ नाग्न्यारतिलीनिषद्याक्रोशयाचना सत्कारपुरस्काराः ] नग्नता, अरति, खी, निपद्या, आक्रोश, याचना और सत्कार पुरस्कार ये सात परीषह होती हैं ।
यहाँ तेरहवे सूत्रकी टीकाके अनुसार समझना ॥१५॥ वेदनीय कर्मके उदयसे होनेवाली परीपहें
वेदनीये शेषाः ॥१६॥ अर्थ-[ वेदनीये ] वेदनीय कर्मके उदयसे [ शेषाः ] बाकीकी ग्यारह परीषह अर्थात् क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल ये परीषह होती हैं।
यहाँ भी तेरहवे सूत्रकी टीकाके अनुसार समझना ॥१६॥ अब एक जीवके एक साथ होनेवाली परीपहोंकी
संख्या बतलाते हैं एकादयो भाज्या युगपदेकस्मिन्नैकोनविंशतेः ॥१७॥
अर्थ-[ एकस्मिन् युगपत् ] एक जीवके एक साथ [ एकादयो ] एकसे लेकर [श्रा एकोनविंशतेः ] उन्नीस परीषह तक [ भाज्याः ] जानना चाहिये।
१-एक जीवके एक समयमे अधिकसे अधिक १६ परीषह हो सकती हैं, क्योंकि शीत और उष्ण इन दो मेसे एक समयमें एक ही होती है और शय्या, चर्या तथा निषद्या ( सोना, चलना तथा आसनमें रहना )