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मोक्षशास्त्र अर्थ-[ अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशाः ] सम्यक् प्रकारसे अनशन, सम्यक् अवमौदर्य, सम्यक् वृत्तिपरिसंख्यान, सम्यक् रसपरित्याग, सम्यक् विविक्त शय्यासन और सम्यक् कायक्लेश ये [ बाह्य तपः ] छह प्रकारके बाह्य तप हैं।
___ नोट-इस सूत्रमें 'सम्यक्' शब्दका अनुसन्धान इस अध्यायके चौथे सूत्रसे आता है-किया जाता है । अनशनादि छहों प्रकारमें 'सम्यक्' शब्द लागू होता है।
टीका १. सूत्रमें कहे गये शब्दोंकी व्याख्या (१) सम्यक अनशन-सम्यग्दृष्टि जीवके आहारके त्यागका भाव होनेपर विषय कषायका भाव दूर होकर अंतरंग परिणामोंकी शुद्धता होती वह सम्यक् अनशन है ।
(२) सम्यक अवमौदर्य-सम्यग्दृष्टि जीवके रागभाव दूर करनेके लिये जितनी भूख हो उससे कम भोजन करनेका भाव होने पर जो अंतरंग परिणामोंकी शुद्धता होती है उसे सम्यक् अवमौदर्य कहते हैं ।
(३) सम्यक वृचिपरिसंख्यान-सम्यग्दृष्टि जीवके संयमके हेतुसे निर्दोप आहारकी भिक्षाके लिये जाते समय, भोजनकी वृत्ति तोड़ने वाले नियम करने पर अंतरंग परिणामोंकी जो शुद्धता होती है उसे सम्यक् वृत्तिपरिसंख्यान कहते हैं ।
(४) सम्यक रसपरित्याग-सम्यग्दृष्टि जीवके इन्द्रियों सम्बन्धी राग का दमन करनेके लिये घी, दूध, दही, तेल, मिठाई नमक आदि रसों का यथाशक्ति त्याग करनेका भाव होनेसे अंतरंग परिणामोंकी जो शुद्धता होती है उसे सम्यक् रसपरित्याग कहते हैं।
(५) सम्यक् विविक्तशय्यासन-सम्यग्दृष्टि जीवके स्वाध्याय, ध्यान आदिकी प्राप्तिके लिये किसी एकांत निर्दोष स्थानमें प्रमाद रहित सोने, वैठने की वृत्ति होने पर अंतरंग परिणामोंकी जो शुद्धता होती है