________________
६०५
मोक्षशास्त्र
तो श्रस्रव है, इसीलिये व्रत सच्चा त्याग नहीं, किन्तु जितने अंशमें वीतरागता प्रगट हुई उतना सच्चा त्याग है । क्योंकि जहाँ जितने अंशमें वीतरागता हो वहाँ उतने अंशमें सम्यक् चारित्र प्रगट हो जाता है प्रोर उसमें शुभ-अशुभ दोनोंका ( अर्थात् व्रत-अव्रत दोनों ) त्याग होता है ।
इसप्रकार श्री उमास्वामी विरचित मोक्षशास्त्रकी गुजराती टीका के हिन्दी अनुवाद में यह सातवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ।
★