Book Title: Karmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Author(s): Veershekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
View full book text ________________ * सप्ततिकाभिधः षष्ठः कर्मग्रन्थः सिद्धपएहि महत्थं, बंधोदयसंत 'पयडिठाणाणं / वुच्छं सुण संखेवं, नीसंदं दिद्विवायस्स // // का बंधतो वेयइ, कइ कइ वा 'संतपयडिठाणाणि / मूलुत्तर पगईसु, भंगविगप्पा उ बोद्धव्वा // 2 // अट्ठविहसत्तछब्बंध "एसु, अट्ठव उदय संतंसा / . एगविहे तिविगप्पो, एगविगप्पो अबंधमि / / 3 / / सत्तट्ठबंध अठ्ठदय-संत तेरससु जीवठाणेसु / एगंमि पंच भंगा, दो भंगा हुँति केवलिणो // 4 // अट्ठसु एगविगप्पो, छस्सु वि गुणसन्निएसु दुविगप्पो / पत्ते पत्ते, बंधोदयसंतकम्माणं // 5 // . पंच नव' दुन्नि अट्ठा--वीसा चउरो तहेव बायाला / "दुन्नि अपंच य भणिया, पयडीओ आणुपुवीए // 6 // - (प्रक्षेपगाथा) बंधोदयसंतंसा, नाणावरणंतराइए पंच। बंधोवरमेवि उदय, संतंसा हुंति पंचेव // 6 // 7 // / ___* सप्ततिकाख्यस्य षष्ठस्य कर्मग्रन्थस्य मूलगाथाः सप्ततिकाचूर्णावेकसप्ततिसङ्ख्याका गृहीताः सन्ति / ताश्चात्रा-ऽङ्कतो दर्शिताः तथाऽन्या अपि प्रक्षिप्तगाथा मुद्रितपुस्तकेषूपलभ्यन्ते ता अप्यत्र संगृहीताः, ताभिः प्रक्षिप्तगाथाभिः सह मूलगाथानां क्रमाङ्क एकनवतिसङ्घयान्तः प्रदशितः स च मुद्रितपुस्तकेषु दृश्यते / हस्तलिखितप्रतौ पुनरेकनवतिगाथोक्तक्रमानुमारेण 66-67 तमगाथयोर्मध्ये द्वे गाथे अधिकतया स्तः, 62 तमगाथा नास्ति, 68-66 तमगाथयोमध्येऽधिकतयैकगाथा-ऽस्ति, तेन हस्तलिखित प्रतौ सर्वा गाथास्त्रिनवतिर्भवति / मुद्रितपुस्तकापेक्षया हस्तलिखितप्रतौ 21..2 तमगाथयीः, 25-28 तमंगाथयोः, 55-56 तमगाथयोश्च क्रमव्यत्ययोऽस्ति / तमगाथा च भिन्नवास्ति। तथा श्रीमन्मलयगिरिपादकृतवृत्तावपि चूर्णिवन्मूलगाथाः सन्ति, केवलं तत्र 24-25 तमगाथयोमध्ये भाष्यसत्काऽशीतितमा गाथा 25 तमगाथातयाऽधिका प्रक्षिप्ता विद्यते, तेन तत्र सर्वा गाथा द्वासप्ततिर्भवति / 1. “पगई” इति वा "पगडि'' इति वा / 2. "वोच्छं" इत्यपि / 3. "निस्संद'' इत्यपि / 4. “संति पगडिठाणाणि" इति वा. “पयडिसंतठाणाणि" इति वा “पयइठाणकम्मंसा" इति वा “पयडिठाणसंतंसा" इति वा पाठः / 5. “पयडीसु" इति वा,"पयडीणं" इति वा पाठः। 6. “उ बोधव्वा" इति वा “मुणेयवा" इति वा पाठः / 7. "०गेसु” इति वा। 8. "संताई" इत्यपि / 6. "होति' इत्यपि। 10-11. "दोन्नि” / इत्यपि / 12 "य" इत्यपि। 13. तहा उद-संता होंति पंचेव / / 6 / ' इति वा, "तहा उदसंता हुंति पञ्चेव // 6 // " इति वा, "पुणो पञ्चेव य उदयसंतंसा / / इति वा।
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