Book Title: Karmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Author(s): Veershekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti

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Page 701
________________ 1] सार्द्धशतकभाष्यम् मिच्छे साणे य हवंति मीसए अंतराय पण // 14 // दसणतियनाणतियं मीसगसम्मं . च बारस हवंति / एवं च अविरयम्मि वि नवरं तहि दंसणं सुद्धं // 15 // देसे देसव्विरई . तेरसमा तह पमत्त अपमत्तो / मणपज्जवपक्खेवा चउदस अप्पुव्यकरणाओ // 16 // वेयगसम्मेण विणा तेरस जा सुहुमसंपराओत्ति / ति च्चिय उवसमखीणे चरित्तविरहेण वारस उ // 17 // खाओवसमगभावाण कित्तणा गुणपए पडुच्च कया। ओदइयभावमिहिं. ते चेव पडुच्च दंसेमि // 18 // चउगइयाई इगवीस मिच्छे साणे य हुँति वीसं च / . मिच्छेण विणा मीसे इगुणीसमनाणविरहेण // 1 // एमेव अविरयम्मी सुरनारयगइविओगओ देसे / सत्तरस हुंति ति चिय तिरिगइ अस्संजमाभावा // 20 // . पन्नरस पमत्तम्मी अपमत्ते आइलेसतिगविरहा / ति च्चिय वारस सुक्केगलेसओ दस अपुवम्मि // 21 // एवं अनियट्टिम्मि वि सुहमे संजलणलोभमणुयगई / अंतिमलेसअसिद्धत्तभावओ जाण चउभावा // 22 // संजलणलोभविरहा उवसंतक्खीणकेवलीण तिगं . / लेसाभावा जाणसु अजोगिणो भावदुगमेव // 23 // अविरयसम्मा उवसंत जाव उवसमगखड्यगा सम्मा। अनियट्टी उवसंतो जाव उवसामियं चरणं . // 24 // खीणम्मि खडयसम्मं चरणं च दुगं पि जाण समकालं / ना नव खइगा भावा जाण सजोगे अजोगे . य // 25 // जीवत्तमभव्वत्तं भव्वत्तं पि हु मुणेसु मिच्छम्मि / ' साणाई खीणंतो दुन्नि अभव्वत्तवज्जा उ // 26 // सज्जोगिअजोगम्मि जीवत्तं चेव मिच्छमाईणं / ससभावमीलणाणो भावं मुण सभिवायं तु // 27 / / // इति सार्द्धशतकमाष्यम् //

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