Book Title: Karmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Author(s): Veershekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti

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Page 650
________________ सप्ततिकाभिधः षष्ठः कर्मग्रन्थः १तच्चाणुपुन्विसहिआ, तेरस भवसिद्धिरअस्स चरमंमि / संतंसगमुक्कोसं, जहन्नयं बारस हवंति // 67 // 86 // ४मणुअगइसहगयाओ, भवखित्तविवाश्गजिअविवागाओ / वेअणिअन्नयरुच्चं, चरमसमयंमि खीअंति / / 68||87 / / अह सुइअसयल जगसिंहर-१०मरुअ११निरुवम१२सहा-- वसिद्धिसुहं / १३अनिहणमव्वाबाहं, तिरयणसारं अणुहवंति // 69 // 88|| दुरहिगम--निउण--परमत्थ--१४रुडरबहुभंगदिट्ठिवायाओ। अत्था अणुसारअव्वा, बंधोदयसंतकम्माणं // 70 / 86 / / * जो जत्थ अपडिपुन्नो, अत्थो अप्पागमेण बद्धोति / तं खमिऊण बहु१५सुआ, पूरेऊणं परि१६कहंतु // 71 // 30 // गाहग्गं १७सयरीए, चंदमहत्तरमयाणुसारीए / १८टीगाइनिअमिआणं, एगृणा होइ १९नउईओ ॥६१॥(प्र.) 1 अस्या गाथायाः स्थामे हस्तलिखितप्रतौ निम्ना गाथा दृश्यते / “ता एव हुंति नेया बारस मवसिद्धिगस्स चरमंते। संतस्स उ उक्कोसं जहन्न एक्कारस हवंति ।८८इति / 2 "व्यस्स” इत्यपि, 'गस्स" इत्यपि वा। ३"हन्नगं" इत्यपि / 4 "मणुय०" इत्यपि / 5 "गजियविवागाओ।" इत्यपि, "गजीववागुत्ति / " इत्यपि, "गजीववागत्ति" इत्यपि, "हवंति भवजीवपावकम्मंसा" इत्यपि / 6 "वेयणियः" इत्यपि / 7 “चरिमे समयम्मि खीयंति // 7 // " इत्यपि, “च चरिमभवियस्स खीयंति // 66 / / 68 // " इत्यपि, “अचरिमसमय म्मि खीयंति // 6 // " इत्यपि / 8 "सुइय०" इत्यपि "सुइरसइजलमसिहर। .9 "जय०" इत्यपि / 10 "मरुय०" इत्यपि। 11 ‘णिरुवम" इत्यपि। 12 "०समाव०" इत्यपि। 13 "अणि०" इत्यपि / 14 "रुइल०" इत्यपि / 15 “सुया" इत्यपि / 16 'कहिंतु" इत्यपि / 17 सत्तरिए" इत्यपि, "सतरीए" इत्यपि वा। 16 “टीकाएँ नियमियाणं" इत्यपि, “टिक्काएँ णियमियाणं" इत्यपि / 16 "णउईउ" इत्यपि।

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