Book Title: Karmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Author(s): Veershekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti

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Page 674
________________ सप्ततिकाभाष्यम् तित्थविणा उदएसु अतित्थसंताइँ हुँति केवलिणो। तित्थेण सतित्थाई सेसा संता गुणकमेण // 16 // जीवस्थानेषु सत्तामाहदुणवइ अडसी छासी असीइ अडहत्तरी य तेरससु / पन्नत्तरिपज्जंता दस संता सन्निपजत्ते // 166 / / जीवस्थानविषयबन्धोदयेषु सत्तामाह'बंधोदइ तेरेवं नवरं उरलोदए छवीसंते / अडसयरि संति बंधे अडवीसि अतित्थि मिच्छविही // 16 // छव्वीसंतचएसु सन्निम्मि वि होइ विगलविहि नवरं / पणसगवीसुदएसु दुणवइ अडसी अ तेवीसा // 16 // अडवीसाई तीसंतबंधि संताई निययउदएसु / अजयजुयमिच्छविहिणा छलसीमाई उरलि चेव // 16 // इगतीसएगबंधे अबंधि उदएसु जइविही होइ / करणं पइ सन्निम्मि वि विहि केवलिणो निरवसेसो // 170 // गतिषु सत्तामाहएगचउ पंच छहिए वीसे उदयम्मि जे तिरियउरला / तेसिं चेवडसयरी तिरिजोग्गचईण नवरं तु // 171 // छप्पणवीसुदएसु अडसयरी नस्थिगिदिपजस्स / जससाहारणआयवउजोएहिं तु मिस्सेसु // 172 // दुणवह अडसी चउगइ 'असी य छासी य मणुयतिरिएसु / सुरणर तिणवइ नरगे वि गुणवई पंच नरि सेसा // 173 // गतिविषयबन्धोदयेषु सत्तामाहबंधोदएसु गइविहि णारयतिरिएसु णवरि अडसयरी / जीवे व्व तिरिंगईए अडवीसि अतिथि सन्निविही // 174 // तिरि सयलि२६८विगलि१८सव्वे 'पर्णसिगाएगवीसछव्वीसे। उरलेगिंदियभंगा एवं इगवीसचउवीसे ॥१७शा पत्तेयअजसभंगा दो दो छव्वीसपनवीसेसु / एवं च पंच सत्तिगतिन्निसया 'होति पणतीसा // 176 / / १“बन्धोदय" इति मु० प्रतौ। 2 “असीइ छासीह" इत्यपि मु० 3 “जीवन्व" इत्यपि मु०।४"पण.. सगा" इति वा / 5 "संतिग" इत्यपि मु०। 6 "हुँति" इत्यपि मु० /

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